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प्रकृति एवं विकृति
१४३ समाज में हरामजादा कोई भी नहीं होता, किन्तु जब समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग अमीरजादा, शाहजादा और नवाबजादा बनकर बैठ जाता है, तब हरामजादों को जन्म लेना ही पड़ता है। इसके अलावा और कोई उपाय शेष नहीं रह जाता। यह समाज की प्रकृति का विकृत स्वरूप है। जहाँ परस्परावलंबन की बात खत्म हो जाती है, वहाँ आदमी यह अनुभव नहीं करता कि कोई मुझे सहारा दे रहा है, आलंबन दे रहा है, मैं किसी के सहारे से जी रहा हूँ। वहाँ सामाजिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, हिंसा, क्रूरता और कठिनाइयाँ बढ़ जाती हैं। ___ सामाजिक जीवन का सबसे बड़ा और पहला सूत्र है-परस्परावलंबन । यह होता है, तब अन्य सामाजिक विशेषताएँ शुरू होती हैं। सामाजिकता का एक लक्षण होता है-अनुशासन । अनुशासन कब आता है? परस्परावलंबन के आधार पर अनुशासन विकसित होता है। सब चाहते हैं कि समाज में अनुशासन आए। अनुशासन का विकास जब तक नहीं होता, तब तक परस्परावलंबन की चेतना नहीं जाग सकती।
मालिक अपने नौकर पर अनुशासन करना चाहता है। स्वामी अपने सेवक पर अनुशासन करना चाहता है। किन्तु जब-जब सेवक को, नौकर को यह अनुभव होता है कि यह मेरे आलंबन का मूल्यांकन नहीं कर रहा है, मुझे आदमी तो समझ ही नहीं रहा है, फिर उसमें अनुशासन की चेतना नहीं जागेगी, प्रतिक्रिया की चेतना जागेगी। अनुशासन सहज भाव से आता है, इसे बताने की आवश्यकता नहीं। सहज भाव से तब आता है, जब परस्परावलंबन का अनुभव हो। जीवन की दिशा
मुनि अनाथी ध्यान करने के बाद एक वृक्ष के नीचे खड़े हैं। सामने सम्राट श्रेणिक हाथ जोड़कर खड़ा है। उसने पूछा, 'आपने घर छोड़ दिया, मुनि बन गए, आपको क्या मिला, आपने क्या पाया?'
मुनि बोले, 'मैंने सत्य का साक्षात्कार कर लिया, सत्य को पा लिया। सत्य को केवल सुना या पढ़ा नहीं, स्वयं प्राप्त कर लिया है।
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