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________________ १४४ जो सहता है, वही रहता है सम्राट ने निवेदन किया, 'आपने जो पाया है, उसके आधार पर मुझे भी बताइए कि सत्य क्या है ?' मुनि ने कहा'अप्पा गई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा में नदणं वणं । । अप्ता कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठिय सुपट्ठियो ।। इन दो श्लोकों में इतने बड़े सत्य का उद्घाटन हुआ है और उसकी अनेक दार्शनिक परिक्रमाएँ हुई हैं । तीन निर्णायक सत्य अनाथी मुनि ने कहा, 'सम्राट ! मैंने इस सत्य को पा लिया । मेरे संकल्प की स्वतंत्रता है। हर व्यक्ति अपना संकल्प करने में स्वतंत्र है। संकल्प की शक्ति है, इसलिए मुझे अपने नैतिक नियमों के निर्धारण करने का अधिकार है। कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य का निर्णय करने का मुझे अधिकार है। तीसरी बात है कि मैं अपने कृत का स्वयं उत्तरदायी हूँ। मैंने संकल्प की स्वतंत्रता, नैतिक नियमन और उत्तरदायित्व, इन तीन सत्यों का साक्षात्कार किया है। जिस व्यक्ति को ये तीन निर्णायक सत्य मिल जाते हैं, उसके जीवन की दिशा बदल जाती है। सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि हम संकल्प की स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। दो धाराओं के बीच हमारा जीवन चल रहा है। कुछ लोग सोच रहे हैं कि हमारा भाग्य ईश्वर के हाथ में है । वह जैसे चलाता है, हम चलते हैं। एक ईश्वर कर्तृत्व की धारा है, तो दूसरी परिस्थितिवाद की धारा है । कुछ लोग सोचते हैं कि आदमी वही करता है, जैसी परिस्थिति होती है । ईश्वरवाद और परिस्थितिवाद के बीच हमारे संकल्प की स्वतंत्रता खोई हुई है। 'पर' से है परिचय मुनि ने कहा, 'मैं इन दोनों से हटकर इस निर्णय पर पहुँच गया हूँ कि मेरा संकल्प स्वतंत्र है। मैंने इसका प्रयोग करके देख लिया है। मुझे कोई पीड़ा से नहीं बचा सका । मेरा अपना संकल्प ही मेरे काम आया, मेरा रक्षक बना। मैं इस गहराई में चला गया हूँ कि जो स्रोत है, वह अपने भीतर ही है । ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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