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जो सहता है, वही रहता है कहा, 'मैं अमीरजादा हूँ, मैं कैसे पानी निकालूँ ? तुम ही पानी निकालो।' उसने कहा, 'मैं कैसे निकालूँ? मैं नवाबजादा हूँ।' वह भी बैठ गया। पहले एक था, अब दो हो गए।
थोड़ी देर हुई, तीसरा आदमी आया। वह दूर से ही पानी-पानी चिल्ला रहा था। वे बोले नहीं, चुपचाप बैठे रहे। वह पास आया और बोला, 'अरे भाई! प्यासा हूँ, पानी तो पिला दो।' एक बोला, 'आप शांत रहें, ज्यादा हल्ला करने की जरूरत नहीं है। मैं अमीरजादा हूँ, दूसरा नवाबजादा है, इसलिए हम दोनों ही पानी नहीं निकाल सकते। अब तुम पानी निकालो।' वह बोला, 'मैं कैसे निकालूं, मैं तो शाहजादा हूँ।' तीनों प्यासे बैठ गए।
थोड़ी देर हुई, चौथा आदमी आया। वह भी प्यासा था। वहीं पहुँच गया। डोल और रस्सी को पड़े देखा, साथ ही तीन उदास चेहरों को भी देखा। वह डोल को रस्सी से बाँधकर पानी निकालने लगा, तो वे तीनों चिल्लाए, 'भाई! हमें भी पानी पिलाना, अन्यथा प्यास के मारे प्राण निकलने में ज्यादा देर नहीं है।' वह बोला, 'सब साधन तो आपके पास ही थे। पानी निकालते और पी लेते।' पहला बोला, 'मैं अमीरजादा हूँ, पानी निकालूं तो इज्जत भ्रष्ट हो जाएगी।' दूसरा बोला, 'मैं नवाबजादा हूँ, पानी निकालूँ तो सारी मर्यादा खंडित हो जाएगी।' तीसरे ने कहा, 'मैं शाहजादा हूँ, पानी निकालने के लिए थोड़े ही जन्मा हूँ?' तब उस चौथे आदमी ने कहा, 'ठीक है। बैठे रहो। मैं ही पानी निकालकर पी लेता हूँ।' वह पानी पीने लगा। तीनों बोल पड़े, 'अरे! हमें भी तो पानी पिलाओ।' उसने कहा, 'मैं हरामजादा हूँ, खुद पानी पीता हूँ, पिलाता किसी को नहीं। यही मेरी मर्यादा है।' वह पानी पीकर चलता बना। उन्होंने पूछा, 'तुम हरामजादे कैसे बने?' तो जवाब मिला-'अमीरजादों, नवाबजादों और शाहजादों ने हरामजादों को पैदा किया है।' अत्यंत मार्मिक व्यंग्य है। यह पूरे समाज की स्थिति का चित्रण है।
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