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________________ अपना आलंबन स्वयं बनें १३१ उभयस्मिन् निरुद्धे तु, स्याद् विष्टपमतीन्द्रियम्। स्वसंवेद्यं हि तद् रूपं, स्वसंवित्त्यैव दृश्यताम्।। इंद्रियों को रोको और मन को रोको। जब दोनों का निरोध होगा, तब उस अवस्था में आत्मा का जो रूप है, वह प्रकट होगा। आत्मा का द्वार बंद है और मन का द्वार खुला है, तब आत्मा का बोध नहीं हो सकता, साक्षात्कार नहीं हो सकता । जब इंद्रिय और मन का संवर होता है, उस अवस्था में अतीन्द्रिय तत्त्व कुछ स्पष्ट होना शुरू होता है। जब इंद्रिय राज्य की सीमा समाप्त होती है, तब अतीन्द्रिय राज्य की सीमा में प्रवेश मिलता है। मनोविज्ञान की भाषा है कि जब चेतन मन काम करता है, तब अचेतन मन सोया रहता है और जब चेतन मन सो जाता है, तब अचेतन मन भीतर से जागना शुरू करता है। आत्मा छोटे की सीमा में आना नहीं चाहती। शायद यही कारण है कि देवता मनुष्य की सीमा में आना कम पसंद करते हैं। देवता छोटे की सीमा में कैसे आएगा? मन का राज्य है छोटा और अतीन्द्रिय चेतना का राज्य है बड़ा। बड़ा राज्य छोटे राज्य में कैसे आएगा? बड़ा कौन? एक राजा के मन में अपनी सत्ता को देखकर अहं जाग गया। उसके मन में प्रश्न उभरा कि इंद्र स्वर्ग का राजा होता है, पर क्या मेरे सामने वह टिक पाएगा? राजा ने अपने सभासदों से पूछा, 'बोलो, मैं बड़ा या इंद्र ?' राजा के सामने सभासद क्या कहते? सबने एक स्वर में कह दिया, 'राजा साहब! आप ही सबसे बड़े हैं। कहाँ आप और कहाँ इंद्र, दोनों का कोई मुकाबला ही नहीं है।' मैं बड़ा कैसे हूँ? इंद्र छोटा कैसे है? इसका फैसला कैसे किया जाए ? राजा को इस प्रश्न का समाधान नहीं मिला। राजा ने घोषणा करवा दी कि जो नागरिक इस प्रश्न का समाधान कर देगा, उसे आधा राज्य दे दूंगा। राजा भी बड़ा दिलदार था। उत्तर देने के लिए बहुत सारे लोग आए। आधा राज्य मिले तो किसका मन नहीं ललचाए! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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