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जो सहता है, वही रहता है चार तत्त्व
ध्यान करने वाले व्यक्ति को चार तत्त्वों पर पहले निर्णय करना होता है-१. लक्ष्य, २. शक्यता, ३. दृष्ट फल, ४. अदृष्ट फल। ध्यान का लक्ष्य क्या है? लक्ष्य बहुत बड़ा है, फिर अपनी शक्ति को देखें और विचार करें कि मेरे पास कितने साधन हैं? लक्ष्य के अनुरूप शक्यता का बोध होना, यह दूसरा तत्त्व है। तीसरा तत्त्व है दृष्ट फल। ध्यान का एक फल ऐसा होता है, जो तत्काल सामने आ जाता है। कायोत्सर्ग का प्रयोग किया, तनाव कम हो गया। श्वास प्रेक्षा का प्रयोग किया, भारीपन कम हो गया। यह इष्ट फल है। चौथा तत्त्व है अदृष्ट फल। व्यक्ति ध्यान करता चला गया, पर फल का अनुभव नहीं हुआ, आत्मा का दर्शन नहीं हुआ, पता नहीं कब होगा? यह अदृष्ट फल है। वेद्य और वेदक
प्रश्न है, क्या आत्मा के दर्शन की हमारे भीतर शक्यता है? चिंतन किया गया तो उत्तर मिला कि शक्यता है। हम आत्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं। साक्षात्कार की अनेक कोटियाँ बन जाती हैं। साक्षात्कार का एक हेतु है वेद्य और वेदकभाव । वेदक वह है, जो अनुभव करने वाला है । वेद्य वह है, जिनका अनुभव किया जाए। आत्मा ज्ञाता है, वह दूसरे का वेदन करता है। वस्तु वेद्य बन जाती है । जब आत्मा स्वयं पर ध्यान केन्द्रित करता है, अनुभव को जानना चाहता है, तब वहाँ वही वेदक और वही वेद्य बन जाता है, वही ज्ञाता और वही ज्ञेय बन जाता है, वही ध्याता और वही ध्येय बन जाता है। वेद्य और वेदक, ज्ञाता और ज्ञेय, ध्याता और ध्येय, दोनों एक ही बन जाते हैं । वेद्य और वेदक के बीच कोई दूरी नहीं होती है। जब इस स्थिति का निर्माण हो जाता है, तब आत्म-साक्षात्कार की भूमिका हमारे सामने आती है।
वेद्यत्वं वेदकत्वं च, यत् स्वस्त स्वेन योगिनः ।
तत् स्वसंवेदनं प्राहुः आत्मनोऽनुभवं दृशाम्।। साक्षात्कार का उपाय
यह आत्म-साक्षात्कार कब होता है? इसका उपाय खोजा गया। उपाय के बिना कोई सिद्धि नहीं होती। कहा गया है----
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