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________________ ११६ जो सहता है, वही रहता है दूसरी ओर दुःख है। इसका कारण है व्यक्ति अपने ही दुःख से मूढ़ बना हुआ है। अबद्ध को कोई बाँध नहीं सकता, अदुःखी को कोई दुःखी नहीं बना सकता। दुःखी व्यक्ति ही दुःख को पाता है। व्यक्ति दुःखी है, इसीलिए वह दुःख पाता है। व्यक्ति में सुख की लालसा जागती है दुःख को मिटाने के लिए, किन्तु भीतर दुःख भरा हुआ है। वह सुख की ओर कैसे जा पाएगा? हम इस सच्चाई को समझें। जब तक मूर्छा रहेगी, व्यक्ति दुःखी बना रहेगा। एक भाई ने कहा, 'मुझे डर बहुत लगता है। मोटर से यात्रा करता हूँ, ट्रेन से यात्रा करता हूँ, तो लगता है कि दुर्घटना हो जाएगी। पुल पर चढ़ता हूँ तो पुल टूटने का भय लगता है। गिरने का भय लगता है।' वस्तुतः हम अपने ही डर से दुःखी बने हुए हैं, मूढ़ बने हुए हैं। नया ब्रह्मचर्य जब तक मूर्छा को मिटाने या कम करने की बात नहीं सोची जाएगी, तब तक हजारों-हजारों साधनों को पा लेने के बाद भी आदमी दुःखी बना रहेगा। यदि पदार्थ की उपलब्धि और भोग से व्यक्ति सुखी होता तो सबसे ज्यादा सुखी होते पश्चिमी देशों के नागरिक । अमेरिका, जापान, जर्मनी आदि देशों के नागरिक बहुत सुखी होते, जहाँ पदार्थों की कोई कमी नहीं है, धन की नदियाँ बह रही हैं । अमेरिका में सेक्स के बारे में बहुत साहित्य प्रकाशित किया गया, काम-सुख के लिए अंधाधुंध प्रचार किया गया, किन्तु उसका परिणाम सुखद नहीं रहा । एक पुस्तक निकली-नया ब्रह्मचर्य । इसने अमेरिका में हलचल मचा दी। उसमें लिखा गया था, “ब्रह्मचर्य से प्रसन्नता रहती है, शांति मिलती है।' लोग उस पुस्तक को पाने के लिए बेचैन बन गए। उन्होंने केवल इंद्रिय संवेदन के आधार पर ही सुख को समझा था। इंद्रिय संवेदन से परे भी सुख है, यह उनके लिए एक नई बात थी। अमूर्छा के स्तर पर, वीतरागता के स्तर पर, रागातीत चेतना के स्तर पर जो सुख होता है, उसके बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था। ऐसी बात उन्हें सुनने को मिली, ऐसा लगा, आग की ज्वाला पर जल का अभिसिंचन हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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