SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपना आलंबन स्वयं बनें रही है। सारा वातावरण अनुकूल है। खाते समय अनुकूल इंद्रिय संवेदन हो रहा है, बड़े सुख का अनुभव हो रहा है। उसी समय एक फोन आया और खबर मिली कि पचास लाख का घाटा लग गया है। अब क्या होगा? वे ही स्वादिष्ट पदार्थ सामने हैं, सुख-सुविधा के साधन भी वे ही हैं, किन्तु इंद्रिय संवेदन का सुख समाप्त हो गया। एक गहरा आघात लगा। जो पदार्थ, जो खाना सुख दे रहा था, वह जहर के समान लगने लगा। यह कैसे हुआ? जिस स्तर पर सुख का संवेदन था, दूसरा स्तर आते ही वह संवेदन समाप्त हो गया, दुःख का स्रोत फूट पड़ा। व्यक्ति अपने दुःख से मूढ़ बन गया। घाटा कहीं लगता था, किन्तु अपने भीतर मूर्छा थी, दुःख था। वह प्रकट हुआ, व्यक्ति अपने ही दुःख से मूढ़ बना, सुख के स्थान पर दुःख का साम्राज्य हो गया। महावीर की परिभाषा महावीर ने कहा, 'आदमी चाहता है सुख और जाता है दुःख की दिशा में।' वह मूढ़ व्यक्ति अपने द्वारा कृत कर्म से विपर्यास को प्राप्त होता है, सुख का अर्थी होकर दुःख को प्राप्त करता है। हम महावीर की वाणी के अनुसार सुख और दुःख की परिभाषा करें। उनके अनुसार सुख और दुःख की परिभाषा होगी, 'मूर्छा दुःखम्, अमूर्छा सुखम्।' मूर्छा है दुःख, अमूर्छा है सुख। है भावात्मक अवरोध । क्रोध, भय, ईर्ष्या, अहंकार, ये सब मूर्छा के प्रकार हैं। जहाँ-जहाँ मूर्छा आती है, आदमी दुःखी बन जाता है। मूर्छा के कारण आदमी दुःख का संवेदन करता है। दुःख का सबसे बड़ा कारण मूर्छा है। सुख का सबसे बड़ा कारण अमूर्छा है। मूर्छा और मोह मिटता है तो कभी विपर्यास नहीं होता। सुख-दुःख का सेतु ___ आदमी चलता है सुख के लिए और दुःखी बन जाता है। प्रश्न है, ऐसा क्यों होता है? सुख और दुःख के बीच एक सेतु है, उसे पकड़ा नहीं गया। महावीर ने बहुत अच्छा सेतु बता दिया। एक ओर व्यक्ति सुखार्थी है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy