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________________ ११४ जो सहता है, वही रहता है वह कहता है कि मैं तो मजे में हूँ, बड़ा सुख है। यह दुःख के अभाव से उत्पन्न स्थिति है। किसी प्रकार का दुःख नहीं है, इसलिए आदमी उसे सुख मानता है। वस्तुतः यह सुख की एक अपूर्ण परिभाषा है। क्या सुख अभावात्मक ही है? क्या दुःख का न होना ही सुख है? किसी व्यक्ति ने बगीचे में सुंदर फूल देखा, उसका मन उल्लास से भर गया। वहाँ क्या दुःख का अभाव ही है? वहाँ विधायक है सुख। अच्छा संगीत सुना, सुख मिला। यह क्या है? क्या यह दुःख का अभाव है? दुःख का अभाव सुख है, यह आंशिक सच्चाई ही हो सकती है। भावात्मक परिभाषा नीतिशास्त्री सिजविक ने सुख की परिभाषा की, 'वांछनीय की अनुभूति का नाम सुख है। जो अनुभूति वांछनीय है, वह सुख है।' यह भावात्मक परिभाषा है। हमें जो वांछनीय अनुभूतियाँ होती हैं, उन्हीं के बारे में हम चाहते हैं कि पुनः ऐसा ही हो। यह हमारा सुख पक्ष है। ऐसी ही परिभाषा न्यायिक और वैशेषिक दर्शन में प्राप्त होती है, 'अनुकूलवेदनीयं सुखम्, प्रतिकूलवेदनीयं दुःखम्,' जो अनुकूल वेदनीय है, वह सुख है एवं जो प्रतिकूल वेदनीय है, वह दुःख है। वस्तुतः सुख-दुःख की परिभाषा करते समय हमें चेतना के अनेक स्तरों में विभाजन कर लेना चाहिए। ऐसा किए बिना सुख को समग्रता से परिभाषित नहीं किया जा सकता। एक सुख है, इंद्रिय संवेदना का । पाँच इंद्रियाँ हैं। उनके अनुकूल विषय मिलते हैं, तो सुख होता है। इंद्रिय संवेदन के आधार पर 'अनुकूलं वेदनीयं सुखं' यह परिभाषा घटित हो सकती है, किन्तु मानसिक एवं भावात्मक स्तर पर यह परिभाषा घटित नहीं हो सकती। सुख-दुःख की अनेक परिभाषाएँ इंद्रिय और मन के स्तर पर की गई हैं। भावनात्मक स्तर पर बहुत कम परिभाषाएँ दी गई हैं। संवेदन और सुख का संबंध हम इंद्रिय स्तर की बात करें। एक आदमी अपने वातानुकूलित मकान में बैठा है। वह भोजन कर रहा है। उसकी थाली में स्वादिष्ट पदार्थ परोसे हुए हैं। पत्नी पंखा झल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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