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व्यक्तित्व के विविध रूप
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इसीलिए मनुष्य बहिर्गामी बना हुआ है। उसने अपनी अन्तर्दृष्टि का विकास नहीं किया है। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अन्तर्दृष्टि के विकास की क्षमता है। वह सूक्ष्म, सूक्ष्मतम बात को जान सकता है, ऐसी उसमें शक्ति है, पर कभी उसने प्रयास ही नहीं किया । बिना प्रयास किए कुछ भी नहीं होता और जो कार्यजा शक्ति होती है, वह भी निकम्मी बन जाती है। शरीर का जो अवयव काम में नहीं लिया जाता, वह शक्तिहीन हो जाता है । अन्तर्दृष्टि भी जब काम में नहीं ली जाती है, तब वह भी निकम्मी हो जाती है । स्थूलदृष्टि की उपयोगिता है, पर केवल स्थूलदृष्टि में सूक्ष्म सत्य को जानने की शक्ति का विकास करना भी आवश्यक है । केवल स्थूल सत्य से जीवन तो चल जाएगा, पर अच्छा जीवन नहीं चलेगा। हमें दोनों को जानना चाहिए । स्थूल को भी और सूक्ष्म को भी ।
मनोबल और मानसिक स्वास्थ्य
हम स्थूलदृष्टि के साथ-साथ सूक्ष्मदृष्टि का विकास करें। यदि सूक्ष्मदृष्टि से देखेंगे तो शरीर का मूल्य भी बदल जाएगा, मन का मूल्य भी बदल जाएगा। उस स्थिति में ही समझ पाएंगे कि शरीर का स्वास्थ्य क्या है और मन का स्वास्थ्य क्या है? मानसिक स्वास्थ्य और मनोबल, दोनों जुड़े हुए हैं। मनोबल है तो मन का स्वास्थ्य बना रहेगा। मनोबल टूटता है तो मन का स्वास्थ्य भी कमजोर हो जाता है। मनोबल के बिना मानसिक स्वास्थ्य को ठीक नहीं रखा जा सकता है।
मनोबल सबमें समान नहीं होता। किसी में एक प्रतिशत, किसी में दो प्रतिशत और किसी में पाँच प्रतिशत मनोबल होता है। अगर हजार आदमी हैं तो मनोबल की मात्रा भी हजार प्रकार की बन जाएगी। लाख हैं तो उसके लाख प्रकार बन जाएँगे । मनोबल कम हुआ, मानसिक स्वास्थ्य भी कम हो जाएगा। - मानस दोष
प्रश्न होता है मनोबल कम क्यों होता है ? आयुर्वेद में इसका विचार किया गया है। मनोबल की कमी का कारण है मानसिक दोष, आंतरिक मन का दोष । अपना दोष है, इसीलिए मनोबल कम होता है। इसकी अगर अध्यात्म की भाषा के साथ तुलना की जाए तो एक बात स्पष्ट हो जाएगी कि भाव और
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