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________________ १०० जो सहता है, वही रहता है मन हमारी दो शक्तियाँ हैं। मन है चिंतन, कल्पना और विचार की शक्ति और भाव है उससे भी सूक्ष्म शक्ति, आंतरिक शक्ति। क्रोध, अहंकार, भय, ईर्ष्या, द्वेष-ये सारे भाव हैं। ये जब मन के साथ जुड़ जाते हैं, तब मनोबल कहलाते हैं। भाव के साथ मन जुड़ता है। आयुर्वेद में इसे मानस दोष कहा गया है। जब मानस दोष आता है, मन में विकार पैदा हो जाता है, मन की शक्ति टूटने लगती है। आदमी सहन नहीं कर पाता। बीमार ने डॉक्टर से कहा-'दर्द इतना हो रहा है कि मैं सहन नहीं कर पा रहा हूं। इच्छा हो रही है कि मैं मर जाऊं।' डॉक्टर ने कहा-'बहुत अच्छा किया जो मुझे बुला लिया। अब जीने की आशा ही नहीं है।' मानस दोष के प्रकार मरने में सहयोग करने वाले भी कम नहीं हैं। मन को विकृत बनाने में सहयोग देने वाले भी कम नहीं है। बाहर भी हैं, भीतर भी हैं। भीतरी कारणों की मीमांसा की गई। मानस दोष के दो प्रकार बताए गए । एक है निजी मानस दोष और दूसरा है आगंतुक बाधा। आयुर्वेद के अनुसार आंगतुक हैं-भूतबाधा और ग्रहबाधा, किन्तु निजी मानस दोष, जो आंतरिक मन के दोष हैं, जिनके कारण मन की शक्ति टूट जाती है, मनोबल घट जाता है। उन कारणों की एक लम्बी सूची है। उस सूची से लगता है कि अध्यात्म और आयुर्वेद दोनों साथसाथ चले हैं। एक आदमी आध्यात्मिक जीवन जीता है तो जाने-अनजाने में आयुर्वेद के मार्गदर्शन को पा लेता है और स्वास्थ्य का सूत्र पकड़ लेता है। एक व्यक्ति आयुर्वेद के सूत्र से अपना जीवन चलाता है तो शायद अध्यात्म की भूमिका तक पहुँच जाता है। आयुर्वेद के साथ एक दर्शन रहा है अध्यात्म का। यह माना जाता है कि आयुर्वेद के ऋषि सांख्य दर्शन से बहुत प्रभावित रहे हैं, इसलिए उसमें अध्यात्म का प्रभाव भी आया है। भारतीय दर्शनों में चरक का भी एक दर्शन बन गया। जैनागमों में चरक का एक दार्शनिक के रूप में उल्लेख मिलता है। चरक आयुर्वेद के मुख्य आचार्य हैं। कर्म का वर्गीकरण आयुर्वेद में जो मानस दोष की सूची है, यदि जैन दर्शन की भाषा में कहें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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