________________
९८
जो सहता है, वही रहता है
है । उसकी भी खोज होनी चाहिए। क्रोध आता है, उसके पीछे भी कोई शारीरिक कारण होता है। क्रोध के पीछे मानसिक एवं पौद्गलिक कारण होता है। क्रोध के पीछे छिपा हुआ एक कारण है-संस्कार । क्रोध का संस्कार है एक वृत्ति । राग और द्वेष की वृत्ति काम कर रही है । किसी से घृणा करना, डरना, प्रेम करना । इनसे सारी प्रवृत्तियाँ पैदा होती हैं और अपना परिणाम लाती हैं । जब घर में विवाद होता है, कलह होता है, झगड़ा होता है, तब यही कहा जाएगा कि लड़ो मत, विवाद मत करो, झगड़ा मत करो। पर लड़ने वाला क्यों नहीं लड़ेगा ? लड़ने की पूरी सामग्री तो भीतर भरी पड़ी है। लड़ाई के कारण भी भीतर सक्रिय हैं । लड़ने की पूरी शक्ति अंदर काम कर रही है और हम आदमी से कहते हैं कि लड़ाई मत करो। हमने चूल्हा सुलगा दिया, ईंधन जला दिया और कहते हैं कि लपट मत दो, गर्मी मत दो। अपने हाथ से चूल्हा जलाया, ईंधन डाला, आग सुलग उठी, भभक उठी और कहते हो कि गर्मी मत दो। यह कैसे संभव होगा ? आँच एक परिणाम है, ताप एक परिणाम है । उस परिणाम को कैसे मिटाया जा सकता है ? आग हो और ताप न हो, यह कैसे संभव है? यदि ताप को मिटाना है तो आग को बुझाना होगा। आग को बुझाना नहीं चाहते, लेकिन ताप से बचना चाहते हैं । आदमी ने कुछ ऐसे उपाय भी किए हैं, पर परिणाम को मिटाने में वे सारे उपाय तात्कालिक ही होते हैं । वे स्थायी और बहुत फलप्रद भी नहीं होते । हमारी सारी समस्याओं और उलझनों पर हम ध्यान दें तो निष्कर्ष यही निकलेगा कि हम केवल परिणाम की परिक्रमा कर रहे हैं । यह परिक्रमा इतनी बड़ी है कि उसका कहीं अंत नहीं होता और समस्या का कोई समाधान भी नहीं निकलता । हम मूल तक नहीं पहुँच पा रहे हैं । ऐसी भ्रांति होती है कि मूल सामने है, लेकिन मूल पर हमारा ध्यान ही नहीं
I
जाता ।
मनोबल मजबूत करें
मानसिक स्वास्थ्य का प्रश्न हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है । शारीरिक स्वास्थ्य का महत्त्व कम नहीं है, परन्तु मानसिक स्वास्थ्य उससे बहु अधिक महत्त्व का है। सच तो यह है कि हम न तो शरीर के विषय में अधिक जानते हैं और न मन के विषय में । हमारे ज्यादा काम आती हैं इंद्रियाँ । इंद्रियों द्वारा प्राप्त वस्तुओं का भोग भी अधिक होता है । सारी शक्ति उन्हीं में खत्म हो जाती है,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org