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________________ जो सहता है, वही रहता है होता है, वही बचता है, शेष सारी कल्पनाएँ समाप्त हो जाती हैं। यदि यह एक सत्य समझ में आ जाए तो बहुत सारे दार्शनिक विवाद भी समाप्त हो जाएँ। दार्शनिक उलझनें, दार्शनिक विवाद, ये सारे भाषा के जगत में चलते हैं। सत्य भाषा से परे हैं। सत्य और भाषा का कभी योग नहीं हो सकता। अनेकांत दृष्टि में इस पर बहुत विस्तृत प्रकाश डाला गया है। हम जिसे सत्य मानते हैं, वह अनेकांत की दृष्टि से सापेक्ष सत्य ही होगा। जो प्रश्न होता है कि क्या हमें सत्य को सत्य कहने का अधिकार नहीं है? हम जो भी कहें, क्या वह असत्य होगा? वह सत्य हो सकता है, यदि तुम अपनी दुर्बलता को स्वीकार कर लो। यदि तुम अपनी असमर्थता या भाषा दुर्बलता स्वीकार कर लो, तो वह सत्य हो सकता है। भाषा की अक्षमता यह है कि वह एक क्षण में, एक शब्द के द्वारा, किसी एक सत्य का ही प्रतिपादन कर सकती है, जबकि सत्य अनंत होता है। वह एक शब्द के द्वारा कभी गृहीत नहीं होता। भाषा की दुर्बलता प्रत्येक तत्त्व में अनंत धर्म होते हैं। एक परमाणु में भी अनंत धर्म होते हैं और वे भी विरोधी। अनंत धर्मों का एक साथ प्रतिपादन करना किसी के सामर्थ्य की बात नहीं है। शब्द के द्वारा एक क्षण में केवल एक पर्याय का, एक धर्म का ही प्रतिपादन किया जा सकता है। शेष अनंत रह जाता है। यदि हम एक ही पर्याय को सत्य मान लेते हैं, तो शेष बचा अनंत पर्याय झुठला दिया जाता है। अनंत सत्य खंडित हो जाता है और सत्य का केवल एक अंश स्वीकृत होता है। इसे ही यदि पूर्ण सत्य मान लिया जाए, तो वहाँ भ्रांति होती है। भाषा की यह सहज दुर्बलता है, जिसे मिटाया नहीं जा सकता। आदमी सोचता है कि एक क्षण में एक सत्य कहा जा सकता है, जीवन बहुत बड़ा है, इसलिए सारे जीवन में तो सम्पूर्ण सत्य कह ही दिया जाएगा। यह भ्रांति है। न ऐसा हुआ है और न ऐसा होगा। इस संसार में जन्मे किसी भी व्यक्ति ने आज तक सम्पूर्ण सत्य का न कभी प्रतिपादन किया है और न कभी कर पाएगा। संभावना भी नहीं है। जीवन के क्षण ही कितने होते हैं? आयु की अवधि कितनी होती है? बहुत थोड़े क्षण हैं और अवधि बहुत छोटी है। विराट सत्य के सामने, अनंत धर्म वाले सत्य के सामने किसी प्राणी की आयु की सीमा तिनके पर स्थित छोटी बूंद जितनी भी नहीं है। इतनी अल्प आयु और इतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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