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________________ व्यक्तित्व के विविध रूप ८९ तो सुनने को मिलती नहीं और गलती बताते ही बताने वाले पर बरस पड़ता है कि कल का छोकरा और मुझे गलती बता रहा है ? तुझे पता है, तूने जितना आटा खाया है, उतना मैं नमक खा चुका हूँ। मेरी क्या गलती बताएगा ? मुझे क्या चेताएगा ? इतनी भयंकर प्रतिक्रिया जागती है कि प्रतिक्रिया प्रतिशोध में बदल जाती है । प्रतिशोध भी भयंकर होता है। मैंने देखा है, अनुभव किया है। एक व्यक्ति ने किसी को बता दिया कि तुम यह गलती कर रहे हो, उसने गाँठ बाँध ली। अब वह प्रतिवाद में दिन में पचास बार कहता, तुम यह गलती कर रहे हो। उसने सोचा, किस भूत से वास्ता हो गया, पिंड छुड़ाना मुश्किल है। मैं तो सहज भाव से बताया कि भाई, यह तुम्हारी गलती है। इसके मन में तो प्रतिशोध की भावना जाग गई। अब यह मेरे पीछे पड़ गया है ? उहूँ तो गलती कर रहे हो, बैठूं तो गलती कर रहे हो, चलूँ तो गलती कर रहे हो, बात-बात में कह रहा है कि गलती गलती-गलती। ऐसा लगता है, मानो गलती बताना इसका सबसे प्रिय कार्य बन गया है। यह प्रतिक्रिया का एक मंत्र बन गया है। यह प्रतिक्रिया का एक प्रसंग है। इस प्रकार की प्रतिक्रिया जागती है । मैंने अनुभव किया है कि अहिंसा का विकास हुए बिना इस प्रतिक्रिया से आदमी बच नहीं सकता । सापेक्ष दृष्टिकोण एक भाई ने पूछा, पूर्ण कौन है ? मैंने उत्तर दिया, मैं हूँ। फिर उसने पूछा, अपूर्ण कौन है ? मैंने कहा, वह भी मैं हूँ। वह बड़ा असमंजस में पड़ गया। उसने कहा कि दोनों कैसे ? पूर्ण हैं तो अपूर्ण कैसे और अपूर्ण हैं तो पूर्ण कैसे ? मुझे फिर उत्तर देना पड़ा। मैंने कहा, मैं भाषा के जगत में जीता हूँ, इसलिए दोनों हूँ। मैं चिंतन के जगत में जीता हूँ, इसलिए दोनों हूँ। मैं स्मृति, कल्पना और बुद्धि के जगत में जीता हूँ, इसलिए दोनो हूँ । भाषा के जगत में जीवित कोई भी व्यक्ति केवल पूर्ण नहीं हो सकता और केवल अपूर्ण भी नहीं हो सकता । भाषा जगत से परे पूर्ण और अपूर्ण की कोई कल्पना भी नहीं है । यह हमारी भाषा की सापेक्षता है। हमने चिंतन और भाषा के योग से बहुत सारी ऐसी कल्पनाएँ कर ली जो भाषा को पार कर अभाषा के जगत में जाने पर और शब्दों की सीमा को लांघकर अशब्द की सीमा में जाने पर खंडित हो जाती हैं। वहाँ केवल अस्तित्व बचता है । जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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