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बन जाता है, वह अपने आपमें अवस्थित हो जाता है । जैन दर्शन में ईश्वरवाद का यह स्वरूप प्रतिष्ठित है ।
ईश्वर है सिद्ध
ईश्वरवाद के संदर्भ में एक भेदरेखा खींचना आवश्यक है । एक है नैयायिक-वैशेषिक आदि दर्शन सम्मत ईश्वरवाद और दूसरा है जैन दर्शन सम्मत ईश्वरवाद | जैन दर्शन का ईश्वर अकर्ता, अमूर्त, चैतन्यमय और समदर्शी है । वह न्यायाधीश नहीं है, न किसी के साथ न्याय करता है । = रक्षा करता है और न मारता है । वह केवल ज्ञाता और द्रष्टा है । जो न्यायाधीश है । न्याय करने वाला है, वह इन सब बातों से मुक्त नहीं रह सकता । जैन दर्शन का ईश्वर न्यायाधीश नहीं है, वह इन सारे प्रपंचों से मुक्त है । नमस्कार मंत्र का दूसरा पद है 'णमो सिद्धाणं' । जैन दर्शन में ईश्वर का नाम है सिद्ध । बह सिद्ध हो गया, जिसे सब सिद्धियां प्राप्त हो गईं, कोई सिद्धि शेष नहीं रही।
उपासना कैसे करें? ___ अर्हत् और सिद्ध- दोनों परमात्मा हैं । हमारे लिए उपास्य है । प्रश्न है-उनकी उपासना कैसे करें ? अर्हत् की उपासना की जा सकती है, क्योंकि अर्हत् मनुष्य है और मनुष्य शरीरधारी है । सिद्ध अशरीर है । अशरीर की उपासना कैसे करें । यह प्रश्न स्वाभाविक है । भारतीय साधना पद्धति में दो शब्द प्रयुक्त हुए हैं- सगुण उपासना और निर्गुण उपासना । जहां मूर्ति का निर्माण होता है; वह सगुण उपासना है । जहां मूर्ति का निर्माण नहीं होता, वह निर्गुण उपासना है । कबीर आदि अनेक संत हुए हैं, जिन्होंने निर्गुण की उपासना की है । सत्त्व, रजस और तमस्- इन तीनों गुणों से जो परे होता है, वह गुणातीत होता है | उसकी उपासना निर्गुण की उपासना है |
ध्यान के चार प्रकार
जैन परम्परा में निर्गुण उपासना के स्थान पर रूपातीत शब्द का प्रयोग
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जैन धर्म के साधना-सूत्र
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