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के अर्थ में जैन दर्शन ईश्वरवादी नहीं है । यदि अनेक ईश्वर को स्वीकार किया जाए तो जैन दर्शन भी ईश्वरवादी दर्शन है ।
संदर्भ व्यापकत्व का
कर्तृत्व और एकत्व- ये ईश्वरवाद के दो पहलू हैं । तीसरा पहलू हैईश्वर व्यापक है । वह सब जगह व्याप्त है । कबीर ने लिखा- वह निर्गुण में गुण है और गुण में निर्गुण है । जैन दर्शन इस अर्थ में ईश्वरवादी नहीं है । जैन दर्शन में ईश्वर एक स्थान-मोक्ष में रहने वाला है | कर्तृत्व, एकत्व
और व्यापकता ईश्वरवाद के संदर्भ में ये तीन दृष्टिकोण हैं | इनके आधार पर कहा जा सकता है-जैन दर्शन ईश्वरवादी नहीं है।
ईश्वर वह है, जो सर्वज्ञ और सर्वदर्शी है, अनंत आनंद और अनंत शक्ति संपन्न है । इस परिभाषा के आधार पर कहा जा सकता है-जैन दर्शन ईश्वरवादी है।
जैन दर्शन में ईश्वरवाद का स्वरूप
जैन दर्शन का ईश्वर सृष्टि का कर्ता नहीं है, अनंत है, मोक्ष में रहने वाला है । जितनी आत्माएं अपनी साधना के द्वारा शरीर-मुक्त होकर मोक्ष में जा पहुंचती हैं, वे सब आत्माएं ईश्वर हैं । जीव जगत् के दो विभाग बन गए- शरीरधारी जीवों का जगत् और शरीरमुक्त जीवों का जगत्, केवल आत्मा का जगत् । जो शरीर के जगत् में रहने वाला है, वह शरीर रहित आत्मा की कल्पना भी नहीं कर सकता । निरंजन-निराकार की कल्पना करना सामान्य व्यक्ति के लिए संभव नहीं है । ईश्वर का जगत् निरंजन -निराकार का जगत् है | एक है ईश्वरीय जगत् और दूसरा है अनीश्वरीय जगत् । मोक्ष का जगत् ईश्वर का जगत् है | वहां ईश्वर ही ईश्वर हैं । कोई शरीरधारी मनुष्य वहां नहीं है । मनुष्य समाप्त हो गया । मनुष्य भी एक अवस्था है, पर्याय है । वह मूल द्रव्य नहीं है । मूल द्रव्य है आत्मा । आत्मा के विभिन्न पर्याय हैं, उनमें एक पर्याय है मनुष्य । जहां पर्याय समाप्त हो गए, व्यक्ति सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गया, ईश्वर और परमात्मा हो गया । जो ईश्वर
णमो सिद्धाणं
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