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हुआ है | ध्यान के चार प्रकार बतलाए गए
१. पिण्डस्थ ध्यान । २. पदस्थ ध्यान । ३. रूपस्थ ध्यान । ४. रूपातीत ध्यान ।
मंत्र का ध्यान करना पदस्थ ध्यान है । यथा-णमो अरिहंताणं इस पद का ध्यान करना ।
शरीर प्रेक्षा करना, आत्म चिंतन करना, शरीर के बारे में चिंतन करना, शरीर पर ध्यान करना, पिण्डस्थ ध्यान है।
किसी प्रतिबिम्ब या प्रतीक का ध्यान करना पदस्थ ध्यान है । निराकार का ध्यान करना रूपातीत ध्यान है ।
उपासना की प्रक्रिया ___अर्हत् की उपासना का प्रतीक है अर्हम् । इसके द्वारा अर्हत् की उपासना की जाती है | मंत्रशास्त्र में अर्हम् के अनेक प्रयोग बतलाए गए हैं । एक प्रयोग है-अर्हम् के कवच का निर्माण किया जाए । एक प्रक्रिया यह है-नाभि पर ध्यान करें । वहां अर्हत् की स्थापना करें । फिर अर्हम् का मृदु उच्चारण करें और अनुभव करें-नाभि से अरुण रंग में अहम् की रश्मियां निकल रही हैं, पूरे शरीर के चारों ओर कवच का निर्माण हो रहा है । एक प्रयोग यह है-ज्ञान केन्द्र पर सफेद रंग का ध्यान और उसके साथ अरिहंताणं' का जप । अर्हत का अनुभव और तादात्म्य का संकल्प | अर्हत की उपासना की यह एक पद्धति है।
सिद्ध की उपासना की पद्धति है-रूपातीत ध्यान, सिद्ध के स्वरूप का अनुचिंतन । अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, अनंत आनंद, अजरअमर, अमूर्त-यह सिद्ध का स्वरूप है । सिद्ध की जितनी सघन विशेषताएं हैं, उन सबकी कल्पना करें । एकाग्रता को सघन बनाएं । निर्विकल्पता की स्थिति घटित हो जाएगी । कल्पना से मुक्त होकर केवल चैतन्य का अनुभव करें । न कोई विचार, न जप, न कल्पना और न शब्द का आलंबन | सारे
णमो सिद्धाणं
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