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णमो सिद्धाणं
आस्तिक और नास्तिक- ये दो शब्द भारतीय चिंतन के क्षेत्र में बहुत प्रचलित हैं । आस्तिक शब्द को बहुत प्रतिष्ठा मिली है । नास्तिक शब्द को बहुत हेय माना गया है ! आस्तिक कहने का अर्थ है - किसी व्यक्ति को बहुत ऊंचा उठा देना । नास्तिक कहने का अर्थ है - व्यक्ति को नीचे गिराने का प्रयत्न करना । एक प्रकार से नास्तिक शब्द अवांछनीय तथा गाली जैसा बन गया । इस शब्द को कोई पसन्द नहीं करता । एक समय था- एक दर्शन दूसरे दर्शन को नास्तिक कहने में गौरव का अनुभव करता था । वैदिक दर्शन के कुछ लोगों ने जैन दर्शन और बौद्ध दर्शन को नास्तिक बतलाया । आधार यह था - जैन और बौद्ध ईश्वर को नहीं मानते । वे अनीश्वरवादी हैं इसलिए नास्तिक हैं । यद्यपि नास्तिक का यह अर्थ नहीं है । पर इसका एक प्रयोग इस प्रकार किया गया । जो आत्मा, पुनर्जन्म आदि को मानता है, वह आस्तिक होता है । इसके साथ ईश्वर को भी जोड़ दिया जाता है । जैन दर्शन आत्मवादी और पुनर्जन्मवादी दर्शन है इसलिए उसे नास्तिक कहने का कोई अर्थ नहीं है | आग्रह या पारस्परिक विवाद के कारण जैन और बौद्ध को नास्तिक कहा गया है । किंतु यह स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं है कि जैन दर्शन अनेकांतवादी है इसलिए वह नास्तिक भी है और आस्तिक भी है ।
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भगवान् महावीर की पच्चीसवीं निर्वाण शताब्दी मनाई जा रही थी 1 एक पत्रकार ने पूछा- कुछ लोग जैन दर्शन को नास्तिक मानते हैं । इस संदर्भ में आपका क्या विचार है ? मैंने कहा- वे लोग जैन दर्शन को नास्तिक ही मानते हैं, किंतु हम महावीर को परम नास्तिक कहते हैं । हमें यह मानने में कोई कठिनाई नहीं है किंतु जो आस्तिक कहलाने वाले हैं, यदि वे नास्तिक
णमो सिद्धाणं
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