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________________ जिसमें अज्ञान और राग-द्वेष विद्यमान है, वह प्रमाण नहीं बन सकता | प्रमाण वह है, जो वीतराग बन गया, सर्वज्ञ बन गया । अर्हत् का मतलब है वीतराग,सर्वज्ञ और सर्वदर्शी । उनके ज्ञान दर्शन पर कोई आवरण नहीं है इसलिए वे प्रमाण हैं। ___ बहुत कठिन है प्रामाणिक होना । कवि ने तराजू को तौलते हुए देखा । उससे रहा नहीं गया । उसका कवि मानस बोल उठा प्रामाणिक पद गही तला, यह तुम करत अन्याय । उच्च पद देत लघुत्व को, गरिष्ठ नीच पद पाय ।। हे तुला ! तुम प्रामाणिक पद ग्रहण कर यह अन्याय कर रही हो । यह कैसा न्याय है तुम्हारा ? जो भारी है, उसे नीचे ले जा रही हो और जो हल्का है, वह ऊपर उठा हुआ है । भारी को नीचा पद और लघु को उन्नत पद, यह कैसी प्रामाणिता है ? एक व्यक्ति झूठ बोलता है लेकिन वह बात उसी को मानना चाहता है, जो प्रामाणिक हो । प्रमाणभूत बनना बहुत दुष्कर है। एक जैन श्रावक के लिए तीन विशेषण आते हैं । उसमें एक है-प्रमाणभूत होना । श्रावक प्रमाणभूत होता है । जब तक राग, द्वेष और अज्ञान है, तब तक कोई आदमी प्रमाण नहीं बन सकता । एक व्यक्ति राग द्वेष रहित है, पर ज्ञानी नहीं है तो वह भी प्रमाण नहीं बन सकता । प्रमाण की दो कसौटियां हैं-राग-द्वेष का क्षय और अज्ञान का विलय । अर्हत् प्रमाण हैं और इसलिए हैं कि वे राग-द्वेष और अज्ञान को नष्ट कर चुके हैं । पूर्ण वही है आचार्य हेमचंद्र ने संकल्प किया-मैं उस व्यक्ति की स्तुति करूंगा, जो अनंत-ज्ञान संपन्न है, अतीतदोष है, जिसका सिद्धान्त अबाध्य है और जिसकी देवता पूजा करते हैं। अनंतविज्ञानमतीतदोषं, अबाध्यसिद्धांतममर्त्यपूज्यं । श्रीवर्धमानं जिनमाप्तमुख्यं स्वयंभुवं स्तोतुमहं यतिष्ये । ७८ जैन धर्म के साधना-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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