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और उदास हो गया । मैं कहां खो गया ? पत्नी ने कहा- अरे ! आप क्या कर रहे हैं ? क्या गुम हो गया ? वह बोला-सब कुछ मिल गया पर मैं नहीं मिला । इस डायरी में लिखा है- मैं खाट पर हूं किन्तु मैं खाट पर नहीं हूं। पता नहीं मैं कहां चला गया ? वह इस प्रश्न को सुलझा नहीं सका। ___ बहुत जटिल है इस प्रश्न का उत्तर पाना कि 'मैं कहां हूं ?' पहेली को सुलझाने के लिए एक मार्ग बतलाया गया-बहिरात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा-ये तीन स्तर हैं। जिसकी आत्मा सोई हुई है, वह बहिरात्मा है । इस स्तर पर जीने वाले व्यक्ति को यह पता नहीं होता-मैं कहां हूं | जिसे इस बात का ज्ञान होता है, यह है अंतरात्मा । जागृत आत्मा का नाम है अंतराता । जो आत्मा स्वानुभूति में लग जाती है, वह है परमात्मा । मैं हूं या नहीं ? मरने के बाद रहूंगा या नहीं ? ये सारे प्रश्न उसके समाहित हो जाते है । आत्मा का साक्षात्कार स्पष्ट होने लग जाता है । प्रत्येक व्यक्ति देखे-मैं कहां हूं ? क्या सोई हुई आत्मा में हूं? जागृत आत्मा में हूं? अपनी अनुभूति में हूं? जब यह स्थिति स्पष्ट होती है, यह चिन्तन उभरता है तब व्यक्ति अंतरात्मा का स्पर्श कर लेता है, परमात्मा की दिशा में यात्रा शुरू हो जाती है । वास्तव में वह इसी अवस्था में पूर्ण भावना के साथ अपने ईश्वर का उच्चारण करता है-णमो अरहंताणं । यह स्वर अंतरात्मा की आवाज बन जाता
सर्वोच्च प्रमाण
___ अर्हत् का महत्त्व इसलिए है कि उसके द्वारा अपनी पहचान होती है। अर्हत् को नमस्कार इसलिए है कि वह हमारा आदर्श है । मैं कहा हूं-इसका स्पष्ट बोध भी अर्हत् की शरण में उपलब्ध हो जाता है । अर्हत् को नमस्कार इसलिए है कि वह अध्यात्म के क्षेत्र में सर्वोच्च प्रमाण है । वह स्वयं है, स्वतः सिद्ध प्रमाण है । मनुष्य के सामने यह प्रश्न रहता है-हम किसे प्रमाण मानें ? किसकी बात को यथार्थ माने ? अर्हत् प्रमाण क्यों है ? जैन दर्शन में प्रमाण की एक कसौटी बतलाई गई-‘जिसका राग, द्वेष और अज्ञान क्षीण हो गया है, वह प्रमाण पुरुष है ।' अप्रामाणिता के दो हेतु हैं-राग, द्वेष और अज्ञान |
णमो अरहंताणं
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