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मेरा आदर्श क्या है | आदर्श के बिना कोई व्यक्ति विकास नहीं कर सकता । विकास की यात्रा आदर्श की दिशा में चलती है । व्यक्ति किसी आदर्श से जुड़ता है और यात्रा करते-करते एक दिन उसके पास पहुंचने का स्वप्न संजोता है । जैन दर्शन में विश्वास करने वाले व्यक्ति का आदर्श है अर्हत् । उसका लक्ष्य है अर्हत् बनना । इसीलिए व्यक्ति अर्हत् को नमस्कार करता है । जैन दर्शन से यह बोध मिला- आत्मा परमात्मा बनता है । अर्हत् परमात्मा बन गया। मुझे भी परमात्मा बनना है, यह संकल्प आदर्श से जुड़ने पर व्यत्ति के भीतर प्रस्फुटित होता है । जैन दर्शन में परम - आत्मा की पांच कोटियां निर्धारित हैं१. अर्हत
२. सिद्ध
३. आचार्य
४. उपाध्याय
५. मुनि
व्यक्ति का लक्ष्य है पहली कोटि में पहुंचना, अर्हत् बनना । व्यक्ति ने अर्हत् का स्वरूप समझा, आत्मा का स्वरूप समझ में आ गया। मैं कौन हूं ? इस प्रश्न का समाधान मिल गया- 'मैं आत्मा हूं ।'
मैं कहां हूं ?
एक प्रश्न है - 'मैं कहां हूं ?' इस प्रश्न में आदमी उलझ जाता है व्यक्ति कहां है, इसका निर्णय करना भी कठिन हो जाता है ।
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एक मनुष्य बहुत भुलक्कड़ था । उसे कुछ भी याद नहीं रहता । मित्र सुझाव दिया- तुम ऐसा काम करो, एक डायरी में नोट कर लो - कहां क्या रखा है और कब क्या करना है ? मित्र का सुझाव अच्छा लगा ! रात को सोते समय सब कुछ नोट कर लिया। सुबह उठा, स्नान आदि से निवृत्त हो, डायरी खोली । उसमें लिखा था - गिलास और चश्मा टेबल पर है, कुर्त्ता और पेंट अलमारी में हैं । अमुक चीज वहां है, सब कुछ मिलता चला गया ! अंत में लिखा था- मैं खाट पर हूं। उसने देखा - खाट खाली है । वह बड़ा बेचैन
जैन धर्म के साधना- सूत्र
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