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है, सारा सुख विलीन हो जाता है । वह दुःख में निमग्न हो जाता है । सुख
और दुःख का यह चक्र दिन-रात की भांति अनवरत चलता रहता है । कभी सुख और कभी दुःख-इस चक्र का कहीं अन्त नहीं होता । शक्ति है, पर वह स्खलित होती रहती है । एक दिन पहले व्यक्ति कहता है-मुझमें इतनी शक्ति है कि पांच कोस निरन्तर पैदल चल सकता हूं । दूसरे दिन वही व्यक्ति लकवाग्रस्त हो जाता है । पहले दिन गर्व से अपनी शक्ति की महिमा बताने वाला अपनी शक्तिहीनता पर आंसू बहाता है | यह शक्ति का स्खलन और प्रतिघात सामान्य मनुष्य के जीवन में प्रकट होता रहता है।
निर्द्वन्द्व है अर्हत्
ज्ञान और अज्ञान, दर्शन और अदर्शन, सुख और दुःख,शक्ति और अशक्ति-इन द्वन्द्वों में जीता है सामान्य व्यक्ति । अर्हत् वह है, जो इन सब द्वन्द्वों से अतीत है, निर्द्वन्द्व है । जो व्यक्ति द्वन्द्वात्मक जीवन से निर्द्वन्द्व की ओर जाना चाहता है, उसे अर्हत् को समझना होता है । अर्हत् को समझने का अर्थ है-आत्मा को समझना, अपने आपको समझना | जो अर्हत् है, वह मैं हूं । इसका तात्पर्य है-एक दिन अर्हत् भी मेरे जैसा ही था, द्वन्द्वात्मक जीवन जी रहा था किन्तु आज वह अर्हत् बन गया । जब वह बना है तो हम क्यो नहीं बन सकते हैं | अर्हत् को नमस्कार का अर्थ है-अर्हत् की दिशा में यात्रा का प्रारम्भ, आत्मा से परमात्मा की दिशा में प्रस्थान । अर्हत् एक प्रेरणा है-प्रत्येक व्यक्ति अर्हत् बन सकता है । इस सत्य का बोध और साक्षात्कार है अर्हत् । इसी सचाई की प्रतिध्वनि है णमो अरहताणं । यह अर्हत् के साथ तादाम्य और समर्पण का संकल्प है । यदि अर्हत् व्यक्ति के सामने नहीं होता तो उसके प्रति समर्पण और तादात्म्य की भावना जागृत नहीं होती, व्यक्ति के मन में अर्हत् की भावना जागृत नहीं होती, व्यक्ति के मन में अर्हत् बनने की प्रेरणा और संकल्प नहीं जागता |
प्रश्न है आदर्श का
प्रत्येक व्यक्ति के सामने एक प्रश्न होता है-मैं कैसा बनना चाहता हूं?
णमो अरहंताणं
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