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मन को वश में करें
सबसे बड़ा मंगल होता है - आत्म-तत्त्व । मन, वचन और काय - ये जब वश में हो जाते हैं तो मंगल बन जाते हैं और वश में नहीं होते हैं तो ये अमंगल बन जाते हैं ।
एक व्यक्ति गुरु के पास गया और बोला, 'गुरुदेव ! कोई ऐसा मंत्र बताएं, जिससे देवता भी मेरे वश में हो जाएं ।' 'तुम्हारे नौकर-चाकर तुम्हारे वश में हैं ?'
'नहीं ।'
'तुम्हारा परिवार तुम्हारे वश में है ?" 'नहीं ।'
'अरे भाई ! जब तुम्हारे नौकर-चाकर, तुम्हारा परिवार, तुम्हारी संतानें, पत्नी और यहां तक कि स्वयं तुम्हारा मन तक तुम्हारे वश में नहीं है तो फिर देवता तुम्हारे वश में कैसे होंगे ? सबसे पहले तो अपने मन को वश में करो ।'
त्रिगुप्ति की साधना
देवता को वश में करने से पहले मन को वश में करो, शरीर को वश में करो और वाणी को वश में करो। आप कोई भी साधना करें - चाहे व्यवहार की, चाहे परमार्थ की किन्तु तीन गुप्तियों के बिना कोई वश में नहीं होता । आदमी तीन गुप्तियों की साधना नहीं करता, अपने मन, वचन और शरीर को वश में किए बिना दूसरों को वश में करना चाहता है, किन्तु ऐसा न कभी हुआ है और न कभी होगा । हम सर्वप्रथम अपने शरीर को वश में करें, अपने मन को वश में करें, ये वश में हो जाएंगे तो फिर देवता को साधने की जरूरत नहीं होगी । देवता स्वयं अपने आप प्रकट हो जाएंगे। देवता को क्यों साधें ? उस देवता से बड़ा देवता तो आपके भीतर बैठा हुआ है। वह है- दिव्य आत्मा, दिव्य चेतना | आप अपनी दिव्य चेतना को जगाएं, दूसरे को जगाकर क्या करेंगे ? वे कभी-कभी जगाने वाले की ही बलि ले लेते हैं । उनको न जगाएं ।
मंगल सूत्र .
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