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पारमार्थिक मंगल नहीं हैं । ये मंगल हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते । इसको तर्क की भाषा में कहते हैं-अनेकान्तिकता, ऐकान्तिकता नहीं । अन्त तक मंगल हो, यह कोई जरूरी बात नहीं। आत्यन्तिकता और अनेकान्तिकता, ये दोष माने जाते हैं । एक व्यक्ति के लिए दीप मंगल बन सकता है, दूसरे के लिए नहीं भी बन सकता । एक व्यक्ति के लिए नारियल, अक्षत, दही, दूध-ये सारे पदार्थ मंगल बन सकते हैं और दूसरे के लिए नहीं भी बन सकते । इसलिए ये वास्तविक मंगल नहीं हैं । इनमें मंगलकारक तत्त्व मौजूद हैं, फिर भी ये आत्यन्तिक और ऐकान्तिक नहीं हैं | इसलिए निश्चित रूप से हम नहीं कह सकते कि ये मंगल ही हैं ।
वास्तविक मंगल
ज्योतिषशास्त्र, निमित्तशास्त्र और शकुनशास्त्र - ये तीनों भारत की बहुत प्राचीन विद्याएं रही हैं । ज्योतिषशास्त्र, निमित्तशास्त्र और शकुनशास्त्रतीनों में इन पदार्थों के मंगलों का बहुत बड़ा विवेचन है किन्तु अध्यात्मशास्त्रमें मंगल उसी को मानना चाहिए, जिसमें निश्चित ही विघ्न और बाधाओं को मिटाने की क्षमता हो । उसी को वास्तव में मंगल मानना चाहिए और सबको औपचारिक मंगल मानना चाहिए | अस्वीकार नहीं किया कि पदार्थ मंगल नहीं होते किन्तु सर्वथा स्वीकार भी नहीं किया । उन्होंने परममंगल पर विचार किया और परममंगल वह होता है, जो निश्चित रूप से मंगल होता है, हर व्यक्ति के लिए होता है, हर काल और हर देश में होता है | वह वास्तविक मंगल होता है । प्रश्न होगा--वह क्या है ? पहला मंगल सूत्र है-णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं,णमो उवज्झायाणं,णमो लोए सव्व साहूणं । अर्हत् मंगल है, सिद्ध मंगल है, आचार्य मंगल है, उपाध्याय मंगल है, साधु मंगल है । ये पांच मंगल हैं । क्यों माना गया इनको मंगल ? क्या कारण है कि इन्हें मंगल माना जाए ? कारण यह है कि ये सब आत्मा हैं । आत्मा सबसे बड़ा मंगल है । चैतन्य सबसे बड़ा मंगल है । आनन्द और शक्ति सबसे बड़ा मंगल है । आत्मा के तीन लक्षण हैं- अनन्त चैतन्य, अनन्त आनन्द
और अनन्त शक्ति । ये सबसे बड़े मंगल हैं । चेतना में कभी अमंगल नहीं होता | आनन्द और शक्ति में कभी अमंगल नहीं होता ।
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जैन धर्म के साधना-सूत्र
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