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हम स्थूल जगत् के नियमों को जानते हैं । स्थूल जगत् के नियमों के अधार पर सारे जीवन को चला रहे हैं । अगर सूक्ष्म जगत् के नियमों को जानने लग जाएं तो सारा संसार इतना विशाल बन जाए कि स्थूल जगत् के नियम उसके सामने व्यर्थ बन जाएं । स्थूल जगत् के नियम सूक्ष्म जगत् में लागू नहीं होते । स्थूल नियमों को हम जानते हैं, इसीलिए स्थूल पदार्थों का हम सबसे पहले चुनाव करते हैं । पदार्थ इसलिए मंगल होते हैं कि उनमें से निकलने वाली रश्मियां हमें प्रभावित करती हैं | उन रश्मियों से हम प्रभावित होते
हैं।
अवास्तविक मंगल ___ पदार्थ का दूसरा लक्षण है- चयापचय धर्म । प्रतिक्षण चय और अपचय होता है । कुछ निकलता है और कुछ जुड़ता है । सूक्ष्म जगत् में यह क्रम तेजी से चल रहा है । हमारे इस शरीर से प्रतिक्षण अनन्त परमाणु निकल रहे हैं और नए परमाणु उसमें आ रहे हैं । यह चमड़ी एक अवरोध है कि बाहर की चीज भीतर में नहीं जा सकती । पानी की बूंद शरीर पर गिरी कि चमड़ी उसे रोक लेगी, वह भीतर नहीं जाने पाएगी । बाहर ही रह जाएगी, बाहर ही सूख जाएगी किन्तु यह तो स्थूल पदार्थ के लिए अवरोध है | चमड़ी में से कितनी सूक्ष्म रश्मियां निकलती हैं, आर पार जाती हैं । कोई बाधा नहीं है | भीत, किवाड़, दरवाजे- सारे के सारे स्थूल जगत् के तत्वों को रोकने वाले हैं । परमाणु के लिए भींत का कोई अर्थ नहीं है । पदार्थ की ये दो विशेषताएं हैं- रश्मिवत् होना और चयापचय धर्म वाला होना । रश्मियां जो निकलती हैं, वे हमें प्रभावित करती हैं और निश्चय हम उनसे प्रभावित हो जाते हैं । बहुत सारे पदार्थ ऐसे हैं, जिनमें से अच्छी रश्मियां निकलती हैं और अच्छा प्रभाव डालती हैं । इसलिए पदार्थ को हमने मंगल माना । पर हर पदार्थ, हर स्थिति में मंगल करते हैं । इस पर आगम शास्त्र में बहुत गंभीर
चन्तन किया गया, फिर निर्णय दिया गया कि वे मंगल हैं पर इनको वास्तविक मंगल नहीं मानना चाहिए । ये द्रव्य मंगल हैं, भाव मंगल नहीं । द्रव्य का अर्थ है- अवास्तविक और भाव का अर्थ है-वास्तविक, पारमार्थिक । ये
मंगल सूत्र
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