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________________ गीत से होता है। मंगलाचरण से कार्य शुरू करते हैं, इसीलिए कि हर व्यक्ति सफलता चाहता है । असफलता कोई नहीं चाहता । एक व्यक्ति बीज बोता है तो वह चाहता है कि यह बीज सफल बने यानी उगे । सफलता तब संभव है, जब कोई बाधा न हो । निर्विघ्न कार्य सम्पन्न हो जाए, तभी सफलता मानी जाती है। किसी भी प्रवृत्ति को प्रारम्भ करते समय मनुष्य यही सोचता है कि यह निर्विघ्न सम्पन्न हो । मंगल बहुत सारे पदार्थ माने गए हैं। अनेक पदार्थों का चुनाव किया गया, जो मंगलकारी होते हैं। नारियल, दीप, जल और दूध आदि को मंगल माना गया । दधि और अक्षत को मंगल माना गया । इन सब पदार्थों को मंगल मानते हैं, पर क्यों मानते हैं। पदार्थ वही मंगल होता है, जो हमें प्रभावित करता है, हमारे विचार और हमारी चिन्तधारा को प्रभावित करता है । इसका वैज्ञानिक कारण खोजें तो प्रत्येक पदार्थ रश्मिमय होता है । हर पदार्थ में से किरणें निकलती हैं । कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं, जिसमें से रश्मियां न निकलती हों । प्रत्येक पदार्थ से तदाकार रश्मियां निकलती हैं और समूचे वायुमंडल में फैल जाती हैं। इसीलिए टेलीविजन में हजार कोस की दूरी का दृश्य आप देख सकते हैं । एक और विकास हो रहा है कि आदमी यहां बैठा है। आदमी चला गया । दो घंटा बाद उसका फोटो लिया जा सकता है। यह बहुत सूक्ष्म बात है | आदमी चला गया किन्तु उसकी रश्मियां अभी भी वहां मौजूद हैं और उन रश्मियों के द्वारा उसका फोटो लिया जा सकता है। हाईफ्रिक्वेंसी का कैमरा हो तो फोटो लेने में कोई कठिनाई नहीं होती । बहुत संवेदनशील कैमरा हो तो फोटो लिया जा सकता है । । जैन आगमों में वर्णित है कि जहां पुरुष बैठा हो, वहां अन्तर्मुहूर्त तक साध्वी को नहीं बैठना चाहिए और जहां स्त्री बैठी हो, वहां अन्तर्मुहूर्त तक साधु को नहीं बैठना चाहिए। क्यों ? इसलिए कि वह पुरुष तो चला गया, वह स्त्री तो चली गई किन्तु उसके परमाणु अभी भी वहां मौजूद हैं। उस स्त्री के बैठने के स्थान पर यदि पुरुष बैठता है तो बहुत संभव है कि पुरुष में उत्तेजना की भावना जाग जाए। जहां पुरुष बैठा हो वहां यदि साध्वी बैठती है, तो बहुत संभव है साध्वी भी प्रभावित हो जाए उन परमाणुओं से । जैन धर्म के साधना-सूत्र ६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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