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________________ है, वहां सम्यक्ज्ञान, सम्यक्दर्शन और सम्यक् चारित्र - तीनों की युति है । जहां सम्यक्ज्ञान का प्रश्न है, वहां ज्ञान मीमांसा और तत्त्व मीमांसा यर्थाथवाद की परिक्रमा करती है । किन्तु जहां श्रद्धा और सम्यग्ज्ञान का प्रश्न है, वहां भक्तिवाद उपादेय है । जैन दर्शन भक्ति को भी स्वीकार करता है । उसे सर्वथा अस्वीकार करने का प्रश्न ही नहीं है । जैन कवियों ने सिद्ध की प्रार्थना की है, आत्म निवेदन किया है, स्तुति और स्तवन किया है । प्रश्न हो सकता है - यह सब क्यों किया ? इसलिए किया है कि भक्तिवाद भी स्वीकृत है, उसका भी मूल्य है | निर्वर्तक कर्तृत्व : निमित्त कर्तृत्व एक विशेषता अवश्य रहेगी । भक्तिवाद का पथिक ईश्वर की प्रार्थना करता है । उसका ईश्वर कर्त्ता है, उसमें कर्तृत्व है । जब भक्त पर संकट आता है तब वह उसे बचाने के लिए दौड़कर आ जाता है । जैनधर्म का परमात्मा न कर्त्ता है और न ही वह किसी भक्त को बचाने के लिए दौड़कर आता है । यह एक बहुत बड़ा अंतर है । सहज प्रश्न उभरता है- जब भगवान् या परमात्मा संकट में हमारी रक्षा नहीं करता, हमें बचाने नहीं आता तब हम उस भगवान् की अर्चना क्यों करें ? वंदना और स्तवन क्यों करें ? कहा गया-कर्तृत्व दो प्रकार का होता है - निर्वर्तक कर्तृत्व और निमित्त कर्तृत्व | यह तर्क शास्त्र की भाषा है । कुम्हार घड़े बनाता है, वह निर्वर्तक कर्तृत्व है । उसे बनाने की जो साधन-सामग्री है, वह निमित्त है । जैन दर्शन का परमात्मा सर्वथा उदासीन नहीं है । वह हमारा निमित्त कर्त्तृत्व बनता है । इतना ही नहीं, जैनदर्शन का परमात्मा अपने भक्त को अपने समान बना देता है । जयाचार्य ने लिखा- 'पारस तू प्रभु साचो पारस आप समो कर देवे' । यह परमात्मा का कर्त्तृत्व है कि वह भक्त को अपने तुल्य कर देता है । जो परमात्मा अपने भक्त को अपने समान नहीं बनाता, वैसा भगवान् हमें नहीं चाहिए । जैन दर्शन ने उस भगवान् को मान्यता दी, जो अपने भक्त को भक्त नहीं रखता, किन्तु उसे भगवान् बना देता है । क्या यह कम महत्त्व की बात है ? क्या हम इसका कम मूल्यांकन करें ? ६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only जैन धर्म के साधना - सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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