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भगवान् महावीर ने उपासना को बहुत मूल्य दिया | महावीर ने एक श्रावक गृहस्थ का नाम रखा-श्रमणोपासक, श्रमण की उपासना करने वाला, श्रमणों के पास बैठने वाला | श्रमण की उपासना के अनेक परिणाम बतलाए हैं । उससे विनय का विकास होता है, दुर्गति का अवरोध होता है, सुगति का मार्ग प्रशस्त होता है । जो श्रावक धर्म का श्रवण करता है, उसमें ज्ञान विज्ञान और प्रत्याख्यान की चेतना जाग जाती है । धर्म श्रवण का अनुत्तर फल है मोक्ष । कितना महत्त्व है श्रमणोपासना और धर्म-श्रवण का ।
प्रश्न भावचेतना की तृप्ति का
भक्तिवादी विद्वानों ने एक प्रश्न उपस्थित किया-जैन-धर्म वैज्ञानिक धर्म है, यथार्थवादी धर्म है । जो धर्म वैज्ञानिक और यथार्थवादी होता है, वह भावचेतना को तृप्त नहीं कर पाता । भक्तिमार्ग भावचेतना को तृप्ति देने वाला मार्ग है । एक भक्त अपने भगवान् की पूजा करता है तब वह इतना भावविभोर हो जाता है कि सब कुछ समर्पण कर देता है किन्तु एक वैज्ञानिक धर्म में यह बात नहीं हो सकती । वहां केवल यथार्थवाद है, न भक्ति, न श्रद्धा
और न समर्पण | भावचेतना को तृप्त करने का कोई साधन नहीं है । केवल बौद्धिक चेतना को आयाम देने के साधन बहुत हैं । ___यह प्रश्न अहेतुक भी नहीं है । हम स्वीकार करें- जैनधर्म वैज्ञानिक और यथार्थवादी धर्म है | आचार्य ने कहा-भगवान् ! आप यथार्थवादी हैं इसलिए कोई नई बात नहीं बता सकते । नई बात वह बता सकता है, जो अयथार्थ में चलता है । ऐसे भी दार्शनिक हुए हैं, जिन्होंने घोड़े के सींग उगाए हैं । आप कभी घोड़े के सींग नहीं उगा सकते ।
यथास्थितं वस्तु दिशन्नधीश, न तादृशं कौशलमाश्रितोऽसि ।
तुंगशृंगाण्युपपादयद्भ्यो, नमः परेभ्यो नवपण्डिलेभ्यः ।। भक्तिवाद में जो विशेषता है वह यथार्थवाद में नहीं हो सकती, यह सही है किन्तु लोग इस बात को भूल जाते हैं कि जैन धर्म एकान्तवादी धर्म नहीं है । वह अनेकांतवाद को मानने वाला धर्म है । जहां अनेकांतवाद
उपासना का महत्त्व
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