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________________ है । वह अपने स्वत्व को भूले हुए है । जैसे एक सिंह का बच्चा बकरियों और भेड़ों के साथ जीवन बिता रहा है, वैसे ही एक आत्मा और चेतना का वलय इन पुद्गलों के साथ जी रहा है, पौद्गलिक पदार्थों के साथ जीवन बिता रहा है । कभी किसी सिंह का योग मिलता है, किसी आत्मज्ञ का योग मिलता है, तब उसे स्मृति होती है-अरे ! मैं पुदगल नहीं हूं, मैं जड़ नहीं हूं। मैं आत्मा हूं, चेतनामय और विशुद्ध हूं । मैं कहां फंस गया ? व्यक्ति को एक साथ अपने स्वरूप की स्मृति हो आती है और वह अपने आपको पहचान लेता है। उपासना का परिणाम उपासना का या परमात्मा की उपस्थिति का पहला परिणाम है- अपनी पहचान । व्यक्ति अपने को जान लेता है कि मैं क्या हूं ? इस पहचान का परिणाम है स्मृति । उस परम आत्मा की स्मृति हो जाती है । जब तक वह अपरम में रहता है, परम को कभी देख नहीं लेता, परम की उपस्थिति का कभी अनुभव नहीं कर लेता, तब तक वह अपरम ही बना रहता है । जो व्यक्ति एक बार परम की सन्निधि में चला जाता है, उसे परम की स्मृति होने लग जाती है। उपासना का दूसरा तत्त्व है-गुणों का विकास । जब परम की स्मृति होती है, गुणों का विकास होने लग जाता है । उपासना का तीसरा तत्त्व है-परिष्कार । जैसे-जैसे गुण विकसित होते हैं, व्यक्ति की वृत्तियों का परिष्कार होता चला जाता है । उपासना का चौथा तत्त्व है-समाधि । उपासना करने वाला व्यक्ति समाधि को प्राप्त हो जाता है । वह असमाधि में नहीं रहता, उसकी समस्याएं सुलझ जाती हैं। अपनी पहचान, गुणों का विकास,परिष्कार और समाधि-ये उपासना के चार परिणाम हैं आत्मबोधो विकासश्च, गुणानां जायते यतः । परिष्कारः समाधिश्च, सा नामोपासना भवेत् ।। ६० ___ जैन धर्म के साधना-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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