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'सत्त्व - विस्मृत सिंह शिशु को सिंह का दर्शन मिला, चिर समाधि - विलीन योगीराज का आसन हिला । कौन कहता है अरे ईश्वर मिलेगा साधना से, वह स्वयं मैं, मैं स्वयं वह, भावमय आराधना से ||
उपासना का महत्त्व
एक सिंह - शावक को चरवाहे ने उठा लिया । बकरियों और भेड़ों के साथ वह पलने लगा । उसने बकरी और भेड़ का अनुकरण करना शुरू कर दिया, वह भेड़ और बकरी बन गया । अपने स्वत्व और सत्त्व को भूल गया । भेड़ बकरियों के साथ खेलना-कूदना, खाना और पीना - जीवन चर्या बन गई | एक दिन ऐसा योग मिला - चरवाहा जंगल में भेड़ बकरियों को चरा रहा था ! अकस्मात् सिंह आ गया । चरवाहा पेड़ पर चढ़ गया । भेड़ बकरियां भागने लगीं । वह सिंह शावक भी दौड़ पड़ा । सिंह ने गर्जना की। वह जोर से दहाड़ा । उसने हत्थल उठाई और दो-चार बकरियों का काम तमाम कर दिया । सिंह शावक ने यह सब देखा । उसके मन में एक नई चेतना और नई स्फुरणा जगी- अरे ! यह तो मैं भी कर सकता हूं। मैं दहाड़ भी सकता हूं और हत्थल भी उठा सकता हूं ।
विस्मृत है स्वत्व
सिंह का दर्शन मिला और सिंह शावक, जो अपने सत्त्व को भुला बैठा था, जाग उठा । वह बकरियों का साथी नहीं रहा, सिंह के साथ हो गया । सिंह - शावक का सिंहत्व प्रबुद्ध बन गया । आज यही दशा मनुष्य की हो रही
उपासना का महत्त्व
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