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रही है, उसे मैं बाल्टी के पानी से बुझा दूंगा और भय की आंधी से जो सब अस्त-व्यस्त हो रहा है, उसे मैं झाडू से साफ कर दूंगा ।
श्रेय के मार्ग में जाने वाला व्यक्ति भी यदि प्रलोभन और भय में चला जाता है तो फिर वह लौकिक मार्ग हो जाता है । इन्हें पहचानने का हमारा विवेक जागृत होना चाहिए । आचार्य भिक्षु से एक व्यक्ति ने पूछा- 'एक छोटा बच्चा अपने हाथ में पत्थर लिये चींटियों को मार रहा है । किसी ने जबर्दस्ती उसके हाथ से पत्थर छीन लिया, इससे क्या हुआ ?' आचार्य भिक्षु बोले- जो पत्थर उसके हाथ में था, वह इसके हाथ में आ गया । बल प्रयोग से कभी श्रेय का मार्ग उपलब्ध नहीं होता । हृदय बदले, वृत्ति बदले, मन बदले, तब श्रेय का मार्ग होगा ।
क्या है हितोपदेश
प्रश्न है- हित का उपदेश क्या है ? ऐसे लोग भी हैं जो विवाह की विधि बतलाते हैं । ऐसे लोग भी हैं, जो व्यापार करने की विधि बतलाते हैं। ऐसे लोग भी हैं, जो लड़ाई करने की विधि बतलाते हैं। ये जीवन के विभिन्न पक्ष हैं, जो प्रेय के साथ जुड़े हुए हैं। ये हितोपदेश नहीं हैं। हितोपदेश है आत्मा के विकास की बात । कर्म का बंधन बहुत जटिल होता है । इन बंधनों को क्षीण करें, निर्जरा करें। संवर और निर्जरा- वास्तव में श्रेय के ये दो ही मार्ग हैं | आचार्य हेमचन्द्र ने एक श्लोक में श्रेय और प्रेय दोनों का चित्र खींच दिया
आश्रवो भवहेतु, स्यात्ः संवरो मोक्षकारणम् । इतीयमाहती दृष्टिः, शेषमन्यत् प्रपंचनम् ||
दर्शन और आचारशास्त्र का बहुत बड़ा विस्तार है । इसमें कौन कहां से पार पायेगा ? आचार्य ने कहा - आश्रव है संसार का हेतु और संवर है मोक्ष का हेतु । शेष सब प्रपंच है, विस्तार है । मोक्ष मार्ग के सिवाय इस संसार में कोई हितोपदेश नहीं है- नर्ते च मोक्षमार्गाद् हितोपदेशोक्ति जगति कृत्सनेऽिस्मन् ।
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जैन धर्म के साधना - सूत्र
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