________________
साक्षात्कार होने पर क्या नहीं हो सकता ? जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है सत्य का साक्षात्कार | इसलिए सत्य के साक्षात्कार का जो मार्गदर्शन देता है, वह उत्तमोत्तम है और वही व्यक्ति पूज्य होता है । पूजा गुण शून्य की कभी नहीं होती । पूजा गुण के आधार पर होती है । इससे बड़ा कोई गुण नहीं है कि सत्य का मार्ग बताया जाए । एक व्यक्ति को मिथ्यादृष्टि बनाना अनंत जीवों को हिंसा की ओर ले जाना है। एक व्यक्ति को सम्यग्दृष्टि बनाना अनंत जीवों के प्रति अहिंसा और मैत्री का भाव बढाना है। एक व्यक्ति को सम्यकदृष्टि बना देना बहुत बड़ी बात है। तीर्थंकर केवली कृतार्थ होकर कितने जीवों के लिए पथप्रदर्शक बनते हैं । वे वास्तव में उत्तमोत्तम हैं ।
दूसरों को मार्ग दिखाएं
जैन दर्शन का मुख्य सूत्र रहा - 'तिन्नाण तारयाणं ।' बुद्धाणं बोहयाणं । स्वयं तरता है, दूसरों को तारता है, स्वयं बुद्ध होता है, दूसरों को बुद्ध बनाता है । स्वयं मुक्त होता है, दूसरों को मुक्त बनाता है | कुछ बनाना किसी के हाथ में नहीं है । बुद्ध बनाना किसी के हाथ में नहीं है, मुक्त करना और तारना भी किसी के हाथ में नहीं है । किन्तु वह बोधि और मुक्ति का मार्ग दिखा देता है । बुद्ध होने का यह मार्ग है और मुक्त होने का यह मार्ग है । यह मार्गदर्शन, सत्य के मार्ग का प्रतिपादन कितना बड़ा कार्य है, इस दृष्टि से हम विचार करें । जो सत्य का साक्षात्कार करके कृतार्थ हो गया, वह दूसरों को भी सत्य का साक्षात्कार करने का मार्ग बताए, तब संपूर्ण बात बनती है । कोरा अकेला मुक्त होगा, तो स्वार्थी बन जाएगा। बौद्धों में एक संप्रदाय है महायान । उसका मत है - मैं अकेला मुक्त नहीं होऊंगा, सबके साथ मुक्त होऊंगा | कल्पना तो बहुत अच्छी है, पर यह हाथ की बात नहीं है । किन्तु जो सत्य स्वयं पाया, दूसरों को भी उस सत्य की प्राप्ति का मार्ग बताएं, यह हाथ की तो बात है । कोई मार्ग पर चले या नहीं, हमारे हाथ की बात नहीं है । यह एक व्यावहारिक बात है । महायान जैसी काल्पनिक या असंभव बात नहीं है | इस संभव आचरण को करने वाला व्यक्ति वस्तुतः उत्तमोत्तम होता है, हमारे लिए पूज्य बनता है ।
परमार्थ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
४७
www.jainelibrary.org