________________
मेरा सारा धन वहां रखा हुआ है, कुछ अन्दर गड़ा हुआ भी है, मुझे तो आप वापस वहीं भेज दें । तीसरा जो चोर था, उससे पूछा गया- 'बोलो, तुम क्या चाहते हो ?' चोर बोला- 'मैं और कुछ नहीं चाहता, मुझे तो बस इन दोनों का पता बता दें ।'
सेठ के धन का पूरा पता लग गया और एक दिन धन की मंजूषा गायब हो गई । सेठ दुःखी हुआ । इतने दिनों का संचित धन इस तरह चला जाए तो दुःख का होना स्वाभाविक ही है। अब वह रात-दिन रोता-कलपता, छाती पीटता । लोगों ने समझाया, पर कुछ भी फर्क नहीं पड़ा | आखिर परिवार वालों ने एक मनश्चिकित्सक को बुलाया । मनश्चिकित्सक सारी बात जान कर उस व्यक्ति के पास आया और बोला- ‘सेठ साहब, आप दुःखी क्यों
सेठ बोला-'दुःखी क्यों न होऊं ? आप देखते नहीं, इतने दिनों का कमाया मेरा सारा धन चोरी चला गया । जीवन भर की कमाई लुट गई । मेरी पेटी चली गई। ____ मनश्चिकित्सक सूझबूझ वाला आदमी था । बोला-'सेठजी, चिन्ता मत करो, चिन्ता की कोई बात नहीं है ।'
'चिन्ता कैसे नहीं करूं?'
'चिन्ता इसलिए न करें कि आपको ज्यादा दिन जीना नहीं है, मरने के दिन करीब हैं । तुमने बहुत दान-पुण्य किये हैं, इसलिए मरने के बाद स्वर्ग निश्चित है । उस पेटी ने सोचा- सेठजी तो स्वर्ग में जाने वाले हैं, फिर मैं यहां रह कर क्या करूंगी ? ऐसा सोच कर वह पेटी आपसे पहले ही स्वर्ग पहुंच गई है । आप शीघ्र ही उसके पास पहुंच जाएंगे।'
सेठ ने कहा- 'ओह, यह बात है ?' सेठ का सारा दुःख एक क्षण में गायब हो गया ।
समान् दृष्टि का अर्थ ... हमारा दुःख कल्पनाजनित और अज्ञान के कारण होता है । मनश्चिकित्सक ने कोई सत्य नहीं बतलाया, किन्तु सत्याभास से उन्हें परिचित कराया । सत्याभास ही दुःख मिटाने का हेतु बन सकता है तो सत्य का
४६
जैन धर्म के साधना-सूत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org