SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है । यह दुःखमुक्ति का उपाय बतलाना सबसे बड़ी साधना है, सबसे बड़ी सेवा है । आचारशास्त्रीय दर्शन, जो सब दर्शनों का नूल रहा है - उसमें चार ही बातें मुख्य हैं- दुःख और दुःख का हेतु । सुख और सुख का हेतु । बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्य माने गए हैं- दुःख है और दुःख का हेतु है। निर्वाण है और निर्वाण का हेतु है । इन चार सत्यों पर बौद्ध दर्शन की आधारशिला खड़ी है। जैन दर्शन में भी यही चार बातें हैं- कर्म है, कर्म का हेतु है । मोक्ष है, मोक्ष का हेतु है । इन चार तथ्यों में ही सब कुछ समा जाता है । सत्य क्या है ? सत्य है सुख को खोजना । निर्वाण, मोक्ष या सुख के हेतु को जानना । सत्य का एक अंग होगा दुःख के हेतु को जानना । जो इन सत्यों को जानता है, इन सत्यों को दूसरों के सामने प्रस्तुत करता है, उससे बड़ा कोई और सुखी बनाने वाला नहीं है और उससे बड़ा कोई दूसरा हित वांछक नहीं है । हितैषी वही है, जो शाश्वत सुख का मार्ग बताए । व्यक्ति छोटा-मोटा काम करता है और परोपकार की अनुभूति कर लेता है । वास्तव • में परोपकार वह करता है, जो सत्य का मार्ग बताता है । 1 पेटी है स्वर्ग में T एक व्यक्ति बहुत लोभी था । उसने एक पेटी बना रखी थी । जो भी धन कमाता, उससे हीरा, माणक आदि खरीदता और उस पेटी में डाल देता । वह धन कमाता चला गया, मूल्यवान् पदार्थ खरीदता चला गया । बहुत मूल्यवान् पेटी तैयार हो गई । वह यह सोच कर बहुत प्रसन्न होता कि मेरे पास बहुत है । लोगों को पता चल गया । दुनिया में पता चला लेने वालों की कोई कमी नहीं है। बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जो स्वयं नहीं कमाते, किन्तु दूसरे लोग जो कमाते हैं, उसका पता लगाते रहते हैं । तीन आदमी मर कर यमराज के पास पहुंचे । यमराज ने पूछा- भाई, तुम क्या चाहते हो ? कहां जाना चाहते हो ? "पहला बोला- मैं तो जागीरदार था, किन्तु जागीर छूट गई । अब आप मेहरबानी करें और मुझे फिर जागीरदार बना दें। दूसरा बोला- 'मैं तो धनवान् सेठ था । बहुत धन कमाता था । परमार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only ४५ www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy