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________________ का उदय होता है, इसलिए उन्हें प्रवृत्ति करनी पड़ती है । किन्तु इससे भी अधिक प्रभावशाली समाधान यह हो सकता है कि स्वयं सत्य का साक्षात्कार कर दूसरों के लिए भी साक्षात्कार करने का मार्ग बतलाए, शायद इससे बड़ी दुनिया में कोई सेवा नहीं हो सकती, कोई सहयोग नहीं हो सकता । समस्या है काल्पनिक दुःख सबसे बड़ी सेवा है एक आदमी को सत्य के मार्ग पर ले जाना | जब सत्य का मार्ग नहीं होता है तो सारे दुःख पैदा हो जाते हैं । दुःख के अनेक कारण माने जाते हैं। घर में रोटी नहीं है, कपड़े नहीं हैं तो आदमी दुःखी बन जाता है । रहने को मकान नहीं मिलता है तो आदमी दुःखी बन जाता है | मनचाही वस्तु नहीं मिलती है तो आदमी दुःखी बन जाता है । दुःख के ये कारण बहुत छोटे लगते हैं | जिसके पास दो हाथ और बीस अंगुलियां हैं, वह व्यक्ति कभी भूखा नहीं रहता, जैसे-तैसे रोटी जुटा ही लेता है | एक छोटा-सा पक्षी भी अपने लिए खाना जुटा लेता है तो मनुष्य जैसा बुद्धिमान् प्राणी रोटी की व्यवस्था कैसे नहीं जुटा पायेगा ? वह इन सबकी व्यवस्था कर सकता है किन्तु सबसे बड़ा है काल्पनिक दुःख । व्यक्ति कितना ही बुद्धिमान् हो, कितना ही पढ़ा-लिखा हो, काल्पनिक दुःखों का अन्त नहीं पा सकता | बुद्धि प्रबल होती है तो वह काल्पनिक दुःखों को बढ़ा देती है । बुद्धि का काम दुःखों को मिटाना कम है, बढ़ाना शायद ज्यादा है । जैसे मकड़ी अपना जाल बुनती है, वैसे ही बुद्धि अपना जाला बुनती है और आदमी उसमें ऐसा फंसता है कि कभी अंत ही नहीं आता । काल्पनिक दुःख बहुत बड़े हैं और वे तभी मिट सकते हैं, जब सत्य का साक्षात्कार हो जाए | वह नकली था एक महिला ने अपने पति से कहा- 'मुझे हार ला दो । मेरी सब सहेलियों के पास हार हैं, मेरे पास नहीं है ।' बहुत आग्रह किया । पति ने सोचाव्यर्थ में पैसा लगाना है, कोई प्रयोजन और आवश्यकता नहीं है । वह पैसा व्यापार में लगे तो उपयोग होगा ! हार में लगने से क्या लाभ होगा। पति परमार्थ ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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