________________
ने बहुत समझाया, पर पत्नी नहीं मानी । आखिर एक दिन पति बाजार से एक बहुत बढ़िया हार लेकर आया । पत्नी ने हार को पहना, खुश हो गई। संयोग ऐसा हुआ कि दूसरे दिन ही जब उतार कर स्नान करने गई, हार चोरी हो गया | जितनी खुश हुई थी, उससे सौ गुना दुःखी हो गई । उसकी भूखप्यास मर गई । पति ने कहा- 'चिन्ता मत करो । यह तो पदार्थ का स्वभाव है, आता है और चला जाता है ।' पत्नी बोली- 'आप कैसे आदमी हैं। मुझे तो दुःख हो रहा है और आपको हंसी आ रही है । एक दुःखी आदमी किसी को हंसता हुआ देखता है तो उसे अच्छा नहीं लगता । दुःखी आदमी के सामने दुःखी हो जाए तो उसे अच्छा लगता है, उसके सामने कोई सुखी आ जाए और हंसे तो उसे लगता है- यह मेरा मखौल उड़ा रहा है, मेरा उपहास कर रहा है | पति का दुःखी न होना उसके लिए सिरदर्द बन गया । उसने कहा'बस, अब रहने दो, मुझसे बात मत करो । मेरा दुःख तुम्हें अच्छा लग रहा है, इसलिए हंस रहे हो ।' पति बोला- तुम जल्दी मत करो, सचाई को समझो और सचाई यह है कि मैं जो हार लाया था, वह नकली था । इसलिए चिन्ता मत करो ।' 'क्या वह नकली था ?' 'हां, वह नकली था' - यह सुनते ही पत्नी का सारा शोक गायब हो गया ।
अधम से अधम
जब सत्य का साक्षात्कार होता है तब दुःख टिक नहीं पाता । यदि हम विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि सौ में से अस्सी - नब्बे प्रतिशत दुःख असत्य और अज्ञानजनित धारणा के कारण पैदा होते हैं । यथार्थ दुःख के कारण बहुत कम होते हैं । अधिकांशतः दुःख नकली को असली मान लेने के कारण होते हैं । जब सचाई का पता चलता है, तो दुःख गायब हो जाता है । सत्य का साक्षात्कार करना और साक्षात्कार का मार्ग बताना, इससे बड़ा उत्तम कार्य मेरी दृष्टि में नहीं है । इसलिए जो व्यक्ति यह कार्य करता है, वह उत्तमोत्तम है । एक व्यक्ति ध्यान करता है। ध्यान से आनंद मिला, सत्य का अनुभव हुआ । वह व्यक्ति दूसरों को बताता है कि भाई, यह मार्ग अच्छा है, यह दुःखों को मिटाने का मार्ग है । वह व्यक्ति भी उसी उत्तमोत्तम का अनुसरण
1
For Private & Personal Use Only जैन धर्म के साधना सूत्रry.org
४२ Jain Education International