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वर्तमान के जीवन में भी संयम करता है और भावी जीवन की भी चिन्ता करता है । जो व्यक्ति संयम करना नहीं जानता, वह कभी भी जीवन को | अच्छा नहीं रख सकता । जो व्यक्ति असंयम के साथ जीता है, वह जानबूझकर अनेक व्याधियों और आधियों को आमंत्रित कर लेता है । आज पूरे संसार में मानसिक और भावात्मक तनाव भयंकर बीमारी के रूप में फैला हुआ है । यह तनाव कोई ऊपर से बरसता नहीं है । हमारे स्वयं के बुलावे पर आया है । मनुष्य इसे बुलाता है, क्योंकि वह आर्यकर्म करना नहीं जानता ।
शान्ति के नाम पर
एक विदेशी आदमी किसी कंपनी के मालिक के पास गया और बोला'मैं तुम्हारी कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों को मेडिटेशन का प्रयोग कराऊंगा, जिससे उनको शान्ति मिले, तनाव कम हो और उनकी कार्यक्षमता बढ़ जाये ।'
मालिक ने उसे प्रयोग के लिए नियुक्त कर दिया । उनमें एक व्यक्ति प्रेक्षाध्यान को जानता था । उसका नम्बर आया । उसने पूछा- 'आप क्या प्रयोग कराएंगे ?'
'मैं तुम्हें एक मंत्र दूंगा, उसका तुम्हें जप करना है । पर एक शर्त है कि किसी को यह मंत्र बताना नहीं है । यहां तक कि तुम इसे अपनी पत्नी को भी नहीं बता सकोगे ।'
उसने कहा- 'ठीक है आप दीजिए मंत्र ।'
'सी० अम्मा, सी० अम्मा, सी० अम्मा- का जाप करो ।' 'इसका अर्थ क्या है ? '
'वह बाद में जानोगे, पहले यह करो, तुम्हें इससे बड़ी शान्ति मिलेगी । ' प्रेक्षासाधक ने संपूर्ण घटनाक्रम बताते हुए कहा - 'महाराज ! आज इस प्रकार लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है, उन्हें ठगा जा रहा है, धोखा दिया जा रहा है । आदमी को शान्ति चाहिए । तनाव को कम करने के लिए लोग भारी से भारी धनराशि व्यय करने को तत्पर हैं । किन्तु इस प्रकार के पाखण्डों में उलझ कर आर्थिक हानि भी उठाते हैं और शान्ति से भी वंचित
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जैन धर्म के साधना सूत्र
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