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मध्यम - मध्यम कोटि का व्यक्ति वह है, जो केवल परलोक की चिन्ता करता है । ऐसा व्यक्ति वर्तमान जीवन की उपेक्षा कर देता है । वह इस सचाई को भुला देता है कि वर्तमान जीवन को अच्छा बनाए बिना परलोक अच्छा कैसे होगा ? परलोक का हित वर्तमान के हित से जुड़ा है । जहां अधम व्यक्ति केवल वर्तमान की चिन्ता करता है वहां मध्यम व्यक्ति केवल परलोक सुधारना चाहता है । परलोक सुधारने के लिए वह ऐसे कर्म कर लेता है, जिनका अनुबंध कुशल नहीं है | केवल वर्तमान की चिन्ता और केवल परलोक की चिन्ता-. दोनों ही अधूरे हैं । मध्यम व्यक्ति का दृष्टिकोण इसीलिए समीचीन नहीं है कि वह वर्तमान की सर्वथा उपेक्षा कर देता है । परलोक-दर्शन भी आवश्यक है किन्तु उससे वर्तमान के हित का सूत्र निष्पन्न होना चाहिए ।
उत्तम पुरुष
उत्तम पुरुष वह होता है, जो वर्तमान जीवन को भी हितकर बनाना चाहता है और भावी जीवन को भी हितकर बनाना चाहता है । वह चाहता है- दोनों जन्म सुधरें । दोनों जन्मों के साथ मित्रता सधे | बहुत कम लोग अपने वर्तमान जीवन के साथ मित्रता स्थापित करना जानते हैं । इस जन्म को, इस मानवीय जीवन को व्यक्ति स्वयं अपने लिए शत्रु बना लेता है | बहुत खाता है, बीमारी पैदा हो जाती है । क्या ऐसा करके वह वर्तमान जीवन को शत्रु नहीं बना रहा है ? बहुत टी. वी. देखता है, आंखों की ज्योति कम हो जाती है, क्या इस तरह वह अपने जीवन को अपना शत्रु नहीं बना रहा है ? अगर जीवन के साथ मैत्री होगी तो ऐसा कार्य वह कभी नहीं करेगा। जहां वह मैत्री करेगा, हित की चिन्ता भी करेगा । वह सोचेगा कि मेरा हित किस बात में है । वह हित की चिन्ता के साथ चलेगा ।
आर्य कर्म : अनार्य कर्म
जो वर्तमान जीवन को अहित में डाल देता है, वह कर्म अनार्य कर्म है । आर्य कर्म वह होता है, जो वर्तमान के हित की भी चिन्ता करता है, आर्य कर्म
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