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होता है और भविष्य के जीवन में भी अहित होता है । ऐसा कर्म करने वाला अधमतम होता है । क्या ऐसा कोई हो सकता है, जो वर्तमान जीवन को भी बिगाड़े ? दुनिया विचित्र है । यहां सब प्रकार के लोग हैं । क्या इस दुनिया में आत्महत्या करने वालों की कमी है ? आत्महत्या करने वाला वर्तमान का भी अहित करता है और आगामी जन्म का भी अहित करता है । वह इस प्रकार के आचरण, कर्म और प्रवृत्तियां करता है, जो दोनों जन्मों को बिगाड़ने वाली या दोनों जन्मों की दुश्मन होती हैं । ऐसा व्यक्ति अधमतम होता है, निकृष्टतम होता है । प्रति वर्ष हजारों-हजारों आत्महत्याएं एक देश में हो जाती हैं । आज के जो विकसित राष्ट्र हैं, उनमें तलाक और आत्महत्या- ये दोनों आम बात हो चुकी हैं । विकसित राष्ट्रों की विकास सूची में ये दो बातें और जोड़ देनी चाहिए । पूछा जाए- विकसित राष्ट्र कौन ? इसका एक उत्तर यह हो सकता है, जहां आत्महत्याएं और तलाक अधिकतम होते हों, वह विकसित राष्ट्र है । ऐसा हो रहा है । किन्तु क्यों हो रहा है ? इसलिए कि आर्यकर्म को समझा नहीं गया, कुशलानुबंध कर्म को समझा नहीं गया । केवल अनार्यकर्म और अकुशलानुबंध या पापानुबंध के कर्म को ही समझा गया ।
अधम
अधम व्यक्ति केवल वर्तमान जीवन की चिन्ता करता है । इस कोटि में उन लोगों को समाविष्ट किया जा सकता है, जो परलोक में विश्वास नहीं करते । ऐसे लोग इस भाषा में सोचते हैं- किसने देखा है परलोक ? खाओपीओ, मौज करो । चार्वाक दर्शन को इसी रूप में प्रस्थापित किया गया । चार्वाक की ऐसी अवधारणा थी या नहीं, किन्तु उनके दर्शन को जिन लोगों ने प्रस्थापित किया, उन लोगों ने यह धारणा अवश्य फैला दी कि जब तक जीओ, मौज-मस्ती से जीओ, आनन्द से जीओ, न कहीं आना है, न कहीं जाना है । इसलिए वर्तमान जीवन जो मिला है, उसमें अधिकाधिक भोग कर लें, समस्त सुखों को अर्जित कर लें । आगे की चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है । इस प्रकार का चिंतन करने वाले लोग अधम कोटि के मनुष्य कहलाते
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। जैन धर्म के साधना-सूत्र
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