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________________ कैसा कर्म करे ? आचार्य ने समाधान दिया- परमार्थ की दृष्टि न जागे तो कम से कम वैसा कर्म करो, जिसका अनुबंध कुशल हो । वह पापानुबंधी न हो, कुशलानुबंधी हो । परमार्थालाभे वा दोषेस्वारंभकस्वभावेषु । कुशलानुबंधमेव स्यादनवद्यं यथा कर्म ।। एक कर्म ऐसा होता है, जिसका अनुबंध अकुशल है । उससे बुराई की श्रृंखला मजबूत होती जाती है, बुराई का अनुबंध दृढ हो जाता है, कहीं समाप्त नहीं होता | वह व्यक्ति परमार्थ की दिशा में गति करता है, जिसका अनुबंध कुशल है । जो कर्म व्यक्ति को भोग में नहीं डालता, त्याग और संयम की ओर ले जाता है, जन्म-मरण के आवर्त में फंसाता नहीं है, वह कुशलानुबंध कर्म होता है। हमारी दुनिया में नाना प्रकार के लोग हैं । सब एक चिंतन और एक वेचार के नहीं हैं | आचार्य ने अपनी दृष्टि से उनका वर्गीकरण करते हुए छह प्रकार के मनुष्य बतलाए हैं अधमतम अधम विमध्यम मध्यम उत्तम उत्तमोत्तम कर्माहितमिह चामुत्र, चाधमतमो नरः समारभते । इहफलमेव त्वधर्मो विमध्यमस्तूभयफलार्थम् ।। परलोकहितायैव प्रवर्तते मध्यमः क्रियासु सदा । मोक्षायैव तु घटते, विशिष्टमतिरुत्तम पुरुषः ।। अधमतम एक व्यक्ति ऐसा कर्म करता है, जिससे वर्तमान के जीवन में अहित आर्य कर्म २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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