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समझें । एक कपड़ा थोड़ा-सा मैला है, उस कपड़े को धोएंगे तो थोड़ा-सा पानी और थोड़ा-सा साबुन लगा । कपड़ा साफ हो जायेगा । एक कपड़ा कीचड़ से भरा हुआ है । उसे धोने के लिए बहुत प्रयत्न करना होगा । उसमें बहुत पानी और बहुत साबुन लगेगा । साबुन से भी वह बहुत बार पूरी तरह साफ नहीं होता । एक एरण्ड का पौधा है, हवा का थोड़ा-सा झोंका आएगा और उखड़ जायेगा | एक बरगद का पेड़ है, वह बड़े से बड़े अंधड़ को भी झेल जायेगा | क्योंकि उसकी जड़ें जमीन में काफी नीचे गड़ी हुई हैं । एरण्ड की जड़ें बहुत शिथिल हैं, कमजोर हैं ।
धार्मिक का पहला लक्षण
व्यक्ति के मन में निरन्तर यह चिन्तन रहे कि ऐसा कोई काम न करूं, जिससे कर्म का बन्धन गाढ हो जाए, इतना चिकना बन्धन हो जाये कि चिकनाहट उतरे ही नहीं । इसका अर्थ है-कर्म की एक सीमा हो गई, कर्मक्षय का एक रास्ता स्पष्ट हो गया । कर्मक्षय का पहला रास्ता है बन्धन गाढ न हो । बहुत कठिन है गाढ को उखाड़ना । यह गाढ बन्धन किससे होता है ? तीव्र क्रोध है तो गाढ बन्धन हो जायेगा । मूर्छा बहुत तीव्र है तो गाढ बन्धन हो जायेगा । इसीलिए धार्मिक व्यक्ति के लिए सबसे पहला उपदेश होता हैतुम सबसे पहले ऐसा प्रयत्न करो, जिससे राग-द्वेष और कषाय प्रगाढ न हों, तीव्र न हों, तीव्रतर और तीव्रतम न बनें, किन्तु मंद हों, मंदतर और मंदतम बनें । धार्मिक बनने का पहला लक्षण है- कषाय को मंद करने का प्रयत्न । हमारा प्रयत्न इस दिशा में हो, जिससे कर्म मंद बनें । जब कर्म मंद होगा तो क्लेश भी मंद होने लग जायेगा । क्लेश को पोषण मिलता है कर्म से । जब क्लेश को पोषण मिलना बन्द हो जायेगा, तो क्लेश भी मंद हो जायेगा और दुःख भी मन्द हो जायेगा |
समस्या है संवेदन की तीव्रता
दुःख की अनुभूति और संवेदन समान नहीं होता । घटना एक होती है किन्तु संवेदन में अन्तर होता है । एक आदमी दुःख का तीव्रतर संवेदन
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जैन धर्म के साधना-सूत्र
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