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मंत्री ने उस पत्र को पढ़ा । उसमें लिखा था- 'महाराज! आप छत को तोड़ कर बाहर निकलेंगे, किसी दरवाजे से बाहर नहीं निकलेंगे ।'
सत्य की एक किरण
सत्य को पकड़ने की अनेक विद्याएं हैं, अनेक उपाय हैं | आदमी सत्य को पकड़ता है । जिस व्यक्ति ने संकल्प कर लिया कि मुझे सत्य का अनुसंधान करना है, वह व्यक्ति सत्य को पा लेता है और पकड़ लेता है | सत्य को पकड़ने के अनेक मार्ग हैं । व्यक्ति सत्य को चाहे श्रुतज्ञान के द्वारा पकड़े, चाहे अवधिज्ञान के द्वारा पकड़े । श्रुतज्ञान का मूल्य भी कम नहीं है । श्रुतज्ञानी को भी केवली कहा गया है । केवली केवली है और श्रुतज्ञानी भी केवली है । श्रुतज्ञानी भी उन पर्यायों को जानता है, जिन्हें केवली जानता है । साक्षात् न जाने पर समस्त पर्यायों को जान सकता है । यह सत्य शोध की प्रवृत्ति जागनी चाहिए | सत्य क्या है ? सत्य की एक किरण है- कर्म का बंध कैसे न हो, सचाई को पकड़ लेना । इस सचाई को पकड़ने का अर्थ है- जीवन की दिशा का बदल जाना । एक आधार मिल गया- ऐसा प्रयत्न हो, जिससे गाढ़ कर्म का बन्ध न हो ।
निर्जरा का हेतु
कर्म दो प्रकार के होते हैं- गाढ बन्धन वाले और शिथिल बन्धन वाले । भगवती सूत्र में दोनों का विशद वर्णन किया गया है । एक व्यक्ति थोड़ासा तप करता है और प्रकाण्ड निर्जरा हो जाती है, अतिशय निर्जरा हो जाती है । एक व्यक्ति बहुत तप करता है, फिर भी बहुत कम निर्जरा हो पाती है । इसका कारण क्या है ? क्या यह पक्षपात है ? क्या निर्जरा के क्षेत्र में भी भाई-भतीजावाद और पक्षपात चलता है ? दस दिन का उपवास किया, निर्जरा कम हुई और एक प्रहर का तप किया, निर्जरा प्रचुर हो गई । ऐसा क्यों ? इसका हेतु है जिस व्यक्ति का कर्म बन्धन प्रगाढ़ है, वह भारी तप करेगा, तब थोड़ी-सी निर्जरा होगी और जिस व्यक्ति के कर्म का बंधन स्वल्प है, वह थोड़ा-सा तप करेगा तो प्रचुर निर्जर होगी । उदाहरण की भाषा में
प्रयत्न का विवेक
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