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वहां पाखण्ड को भी पनाह मिलती है, शरण मिलती है । राजा ने उस ज्योतिषी के ज्ञान को परखने का निश्चय किया । ज्योतिषी से कहा-'महाराज ! मेरा एक प्रश्न है, आप उसका उत्तर दें ।" ।
- 'राजन् ! आपका क्या प्रश्न है ?' ____ 'मैं राजसभा के बाद अपने प्रासाद में जाऊंगा । रात को वहां रहूंगा। मेरे प्रासाद में पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण- इन चार दिशाओं में चार दरवाजे हैं । आप बताएं- मैं सुबह किस दरवाजे से बाहर निकलूंगा ? ____ कभी-कभी ऐसे विचित्र प्रश्न भी होते हैं । महावीर के पास एक व्यक्ति आया, बोला-'तुम सर्वज्ञ हो, सब कुछ जानते हो तो बताओ- मेरे हाथ में तिनका है, उसे मैं तोडूंगा या नहीं ?' अब यदि कहा जाए कि तोड़ोगे तो नहीं तोड़ेगा और कहा जाए कि नहीं तोड़ोगे तो तोड़ देगा । ये बड़ी उलझन भरी बातें हैं।
राजा ने उलझन भरा प्रश्न रख दिया । ज्योतिषी ने कहा- 'राजन्, मैं आपके प्रश्न का उत्तर कागज में लिख देता हूं । वह पत्र किसी तीसरे के पास रहेगा । न वह मेरे पास रहेगा और न आपके पास । वह पत्र मंत्री के पास रहेगा | जब आप प्रातः महल से निकल कर आएं तो उस पत्र को राजसभा में सबके सामने पढ़ें ।'
ज्योतिषी के पास प्रकाश था | जहां प्रकाश होता है वहां सत्य सामने आ जाता है । सत्य का साक्षात्कार करने के बाद कोई समस्या रहती नहीं है । राजा प्रासाद में चला गया । उसके मन में विकल्प आया-ज्योतिषी ने कौन-सी दिशा का लिखा है ? पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण- इन चारों में से ही किसी दरवाजे का लिखा है । मुझे इन चारों दरवाजों से ही नहीं निकलना है । उसने महल के अधिकारियों को निर्देश दिया- महल का एक हिस्सा तोड़ दो । आदेश का पालन हुआ । एक ओर का हिस्सा तोड़ दिया गया । अब एक नया रास्ता बन गया । प्रातःकाल राजा उस टूटे हुए नये मार्ग से बाहर निकला । वहां से सीधे राजसभा में पहुंचा।
राजा ने पूछा- 'ज्योतिर्विद् । बताओ, मैं कौन-से दरवाजे से बाहर निकला ?' ___ज्योतिषी ने कहा- 'राजन् ! मैं अपना उत्तर पहले ही लिखकर मंत्रीजी को दे चुका हूं | आप उनसे लेकर पढ़ लें ।' १८
जैन धर्म के साधना सूत्र
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