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________________ मुझे वर्तमान दशा से कम से कम नीचे तो नहीं जाना है । जो प्राप्त हो गया है, जिस विकास को प्राप्त कर लिया है, उससे नीचे अविकास की ओर नहीं जाना है | इतना सा चिंतन होता है तो प्रयत्न की दिशा अपने आप बदल जाती है | चिंतन इस बिन्दु पर केन्द्रित हो जाएगा कि मुझे कर्म का अभाव I हो, क्लेश का अभाव हो, दुःख का अभाव हो, वैसा प्रयत्न करना है । दिशा निर्धारित हो I गति का मूल्य है, किन्तु यदि दिशा सही नहीं है तो गति का श्रम होगा, गति का अर्थ कुछ नहीं होगा। गति से पहले दिशा का निर्धारण होना चाहिए कि किस दिशा में जाना है । जाना है पश्चिम में और चल पड़ा दक्षिण की ओर तो मंजिल नहीं मिलेगी, श्रम व्यर्थ जाएगा। दिशासूचक यंत्र का मूल्य इसीलिए है कि उसके आधार पर वायुयान भी चलते हैं, जलयान भी चलते हैं। हमारे जीवन के लिए यह एक दिशासूचक यंत्र है कि मुझे किस दिशा में जाना है । फिर उस दिशा में प्रयत्न होना चाहिए। जहां कर्म और क्लेश का क्षय हो, वह गंतव्य है । जब यह सत्य हाथ में आता है, तब कहीं कोई बाधा नहीं रहती, रुकावट नहीं होती । सत्य प्रकाश की भांति बिखरा हुआ रहता है। जहां देखो, सत्य दिखाई देता है और जहां सत्य है वहां कोई समस्या नहीं रहती । बहुत सारी समस्याएं असत्य और क्रोध का परिणाम होती हैं । इसीलिए वेदान्त के आचार्यों ने इसे माया कहा है । माया असत्य है, वास्तविक नहीं है । जैन दर्शन की भाषा होगी - आदमी पदार्थ में उलझ गया, मूल द्रव्य को नहीं पकड़ पा रहा है । मूल सत्य को पकड़ पाता तो उलझता नहीं । किस दिशा से ? . एक ज्योतिर्विद् राजसभा में आया । राजा ने उसका सम्मान किया और आसन दिया। राजा ने सोचा- यह वास्तव में ज्योतिर्विद् है या कोई पाखण्डी ? इसकी परीक्षा होनी चाहिए । ज्योतिष विद्या महत्वपूर्ण है, किन्तु उसकी छाया में पाखण्ड भी चलता है । धर्म के क्षेत्र में सचाई भी चलती है और धर्म का 1 पाखण्ड भी चलता है । यही स्थिति आर्थिक क्षेत्र की है । जिसका मूल्य है, 1 प्रयत्न का विवेक Jain Education International For Private & Personal Use Only १७ www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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