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प्रयत्न का विवेक
मनुष्य के पास शक्ति है इसलिए वह प्रयत्न करता है, चेष्टा करता है । शक्ति होना स्वभाव है और प्रयत्न करना पुरुषार्थ है । आदमी कुछ न कुछ करता है, निकम्मा नहीं रहता । एक छोटा बच्चा भी इतना प्रयत्न करता है कि एक क्षण भी वह स्थिर नहीं रहता | उसका कभी हाथ उठता है, कभी पैर उठता है और कभी शरीर का कोई अन्य अवयव उठता है । शायद एक क्षण भी स्थिर रहने की बात नहीं होती । क्योंकि उसके भीतर शक्ति का स्रोत है और वह शक्ति कुछ करने को प्रेरित करती रहती है ।
कर्म और क्लेश की श्रृंखला
प्रश्न यह है कि प्रयत्न किस दिशा में होना चाहिए, क्यों होना चाहिए ? हम प्रयत्न क्यों करें? चेष्टा क्यों करें ? इनकी प्रवृत्ति क्यों करें ? इस प्रश्न का बहुत सुंदर समाधान दिया गया है- जो जन्म है, वह कर्म और क्लेश की एक परंपरा है । कर्म से क्लेश और क्लेश से कर्म- यह एक श्रृंखला है, चक्र है । व्यक्ति कर्म करता है, कर्म का बन्ध होता है, उससे क्लेश पैदा होता है और उस क्लेश से फिर नए कर्म का बंध होता है । क्रोध का उदय होता है । उसका हेतु है क्रोध वेदनीय कर्म | क्रोध वेदनीय कर्म का विपाक हुआ, उससे मनुष्य में क्रोध अवतरित हो गया । क्रोध आया और फिर क्रोध वेदनीय कर्म का बन्ध हो गया । यह चक्र बराबर चलता रहता है । इस चक्र को तोड़ना बहुत कठिन है ।
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जैन धर्म के साधना सूत्र
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