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दुःखबहुल जीवन . वास्तव में यह जन्म बड़ा दुःख देने वाला है । एक व्यक्ति को एक जन्म में कितनी बार दुःख होता है | एक जन्म में नहीं, एक वर्ष में भी नहीं, एक दिन में ही व्यक्ति कभी-कभी अनेक बार शारीरिक और मानसिक दुःखों का अनुभव करता है । ऐसे दुःख-बहुल जीवन में अगर हम सफलता का सूत्र न खोजें या सफलता की बात न करें तो फिर मनुष्य और पशु में अन्तर क्या रहेगा ? इस दुःख-बहल जीवन में हम अच्छा जीवन कैसे जी सकते हैं ? सफल जीवन कैसे जी सकते हैं ? सुख का अनुभव कैसे कर सकते हैं ? हमारे जीवन की सार्थकता क्या है ? इस खोज में आदमी चलता है, तब उसे सत्य का अनुभव होता है ! उसके सामने सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान
और सम्यक् आचार- ये तीन तत्त्व आते हैं । इनका मूल तात्पर्य यही है कि कषाय की मंदता सम्यक् दर्शन और सम्यक् ज्ञान की चेतना है । और अधिक कषाय जब उपशान्त होता है, तब विरति की चेतना आती है | जिस व्यक्ति ने इस चेतना का उपभोग किया है, उसके दुःख कम हो जाते हैं | मिथ्या दृष्टिकोण का जीवन जीने वाला व्यक्ति दिन में यदि सौ बार दुःख का अनुभव करता है तो सम्यक् दृष्टिकोण का जीवन जीने वाला व्यक्ति मुश्किल से एकदो बार दुःख का अनुभव कर सकता है । तारतम्य की दृष्टि से देखें, तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो दुःख में बहुत अन्तर आ जाता है। दो व्यक्ति दर्द से ग्रस्त हैं । एक व्यक्ति 'पेन किलर' का उपयोग करता है और एक उसका उपयोग नहीं करता । दोनों के संवेदन में अंतर आ जायेगा । जिसने पेन-किलर का उपयोग किया, उसका कष्ट एक बार मिट गया । उसे ऐसा लगा, जैसे बीमारी चली गई । जो पेनकिलर उपयोग नहीं करता, उसे दुःख का संवेदन ज्यादा होता है।
ध्यान का प्रयोग क्यों ? __मैं मानता हूं यह सम्यक् दर्शन और सम्यक् ज्ञान सबसे बड़ा पेनकिलर है । दूसरे पेनकिलर तो शरीर-किलर हैं । शरीर को आराम देते हैं । बहुत बार लोगों ने पूछा- ध्यान के प्रयोग क्यों करें ? बस एक इलेक्ट्रॉड लगाया और वृत्ति समाप्त हो गई । क्रोध बहुत आता है । क्रोध के बिन्दु पर इलेक्ट्रॉड
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जैन धर्म के साधना सूत्र
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