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होती है, यथार्थ को समझने का मौका मिलता है, चेतना को प्रभावित करने वाले तत्त्व उपशान्त हो जाते हैं, आशय की शुद्धि संभव बनती है, चेतना अप्रभावित होने लग जाती है, हमारा ज्ञान भी अप्रभावित हो जाता है ।
मैं बहुत बार सोचता हूं- दर्शन और ज्ञान को अलग क्यों करें? यह बात इस संदर्भ में स्पष्ट हो जाती है । जो तीव्र कषाय से प्रभावित होता है, वह है मिथ्या दर्शन | उस अवस्था में जो ज्ञान होगा, वह सम्यक् नहीं हो सकता । जब कषाय मंद और उपशान्त होगा तब उस अवस्था में ज्ञान कषाय से अप्रभावित बन जायेगा इसलिए ज्ञान भी सम्यक् बन जायेगा ।
विरति का तात्पर्य ____ जीवन की सफलता का एक सूत्र है- विरति । विरति की परिभाषा की गई- 'ज्ञात्वा अभिसमेत्य अकरणं विरतिः । विरति का तात्पर्य है जानकर, अभिसमेत्य- विवेक और निर्णय कर किसी कार्य को न करना । केवल न करना विरति नहीं है । व्यक्ति कमरे में बैठा है। किसी ने दरवाजा बंद कर दिया । भूख लगी हुई थी, किन्तु रोटी नहीं मिली । रोटी बनाने वाला या परोसने वाला नहीं था, उसे भूखा रहना पड़ा । यह विरति नहीं, विवशता है । विरति स्ववशता है । दरवाजा खुला है, रोटी है । व्यक्ति सोचता हैआज मुझे उपवास करना चाहिए । उसने भोजन का परित्याग कर दिया । इसका नाम है विरति । ज्ञात्वा और अभिसमेत्य- ये दोनों शर्ते पूरी होनी चाहिए । सम्यक् दर्शन भी होना चाहिए और सम्यक् ज्ञान भी होना चाहिए । जो व्यक्ति कषाय से बहुत ज्यादा प्रभावित है, वह खाना छोड़ने की बात नहीं सोचेगा । व्यक्ति कभी-कभी क्रोध में आकर खाना छोड़ देता है । जो स्वयं में ताप है, उसने एक दूसरे ताप को पैदा कर लिया । आखिर ताप ही रहा । वास्तव में वही व्यक्ति विरति कर सकता है, जिसका कषाय उपशान्त है
और ज्ञान उस उपशान्ति के साथ हो रहा है । ऐसा व्यक्ति सोचता है अमुक काम नहीं करूंगा, अमुक चीज नहीं खाऊंगा, अमुक प्रवृत्ति नहीं करूंगा। इसका नाम है विरति, चारित्र, आचरण । सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और विरति अथवा सम्यक् चारित्र- ये जिसको उपलब्ध हैं, उसका जीवन सफल है।
सफल जीवन के सूत्र
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