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मन्द बन गया । क्रोध, अहंकार, माया, प्रवंचना और लोभ की उपशान्त अवस्था में जो ज्ञान होता है, वह निर्मल ज्ञान होता है । क्योंकि उस पर किसी का प्रभाव नहीं है । एक व्यक्ति खराब आदमी के प्रभाव में आता है, शराब पीने लग जाता है । वह शराब नहीं पीता था, पीना चाहता भी नहीं था, किन्तु दूसरे के प्रभाव में आया और शराब पीने लगा । ऐसा क्यों होता है ?
प्रभावित चेतना : स्वतंत्र चेतना
हमारी चेतना की दो अवस्थाएं होती हैं- प्रभावित और अप्रभावित । हम स्वतंत्रता की बहुत बात करते हैं, स्वतंत्र रहना चाहते हैं, पर पहले यह सोच लेना चाहिए कि चेतना किसी से प्रभावित है या नहीं । अगर दूसरे से प्रभावित है तो स्वतंत्रता की बात नहीं सोचनी चाहिए | प्रभावित चेतना
और स्वतंत्र चेतना में कोई संबंध नहीं है । वह तो बिल्कुल परतंत्र होगी । माता-पिता से परतंत्र नहीं है तो दूसरे से परतंत्र बन जाती है | बहुत सारे लड़के कालेज में, विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं, वे किसी मित्र से बंध जाते हैं, किसी कन्या से बंध जाते हैं और फिर माता-पिता की बात नहीं मानते । माता-पिता कहते हैं- तुम हमारी बात सुनो । वह कहता है- मैं अपने स्वतंत्र चिंतन से काम लूंगा, किसी दूसरे की बात नहीं मानूंगा | क्या उसकी चेतना स्वतंत्र है ? पहले वह माता-पिता से प्रभावित था, अब दूसरे से प्रभावित हो गया। जहां प्रभाव है, वहां स्वतंत्रता की चेतना नहीं हो सकती । चेतना की स्वतंत्रता वहीं होगी, जहां वह प्रभावित नहीं, अप्रभावित होगा । जो व्यक्ति किसी विचार, चिंतन या भावना से भावित होता है, वह उससे प्रभावित हो जाता है, सम्मोहित हो जाता है । एक का सम्मोहन टूटा और दूसरे का सम्मोहन शुरू हो गया । सम्मोहन सम्मोहन ही है । वहां स्वतंत्रता कहां? स्वतंत्र वह होता है, जो सम्मोहित नहीं होता । उसकी चेतना सर्वथा असम्मोहित होती है।
सफल जीवन के सूत्र
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