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के लिए परमार्थ दृष्टि, अहिंसा की दृष्टि उसके साथ जुड़े, यह बहुत आवश्यक
ज्ञान, दर्शन और विरति
प्रश्न है- यह कैसे जुड़े ? इसके लिए तीन मार्ग बतलाए गए- सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और विरति । ज्ञान बीच में रहता है । एक ओर है सम्यक् दर्शन और दूसरी ओर है विरति, बीच में है सम्यक् ज्ञान | जहां ये दो तटबंध नहीं हैं, वहां ज्ञान अज्ञान से अधिक खतरनाक बन जाता है । शायद अज्ञानी लोगों ने जितने अपराध नहीं किये हैं, समाज को जितना आतंकित नहीं किया है, उतना ज्ञानी लोगों ने किया है । ज्ञानी का तात्पर्य यहां उन लोगों से है, जिनके साथ ज्ञान के ये दो तटबंध नहीं हैं । सम्यक् दर्शन और विरति से विहीन ज्ञान ने दुनिया में बहुत आतंक बढ़ाया है । सम्यक् दर्शन से शुद्ध ज्ञान की परिणति है विरति । हमारा दृष्टिकोण बिल्कुल साफ बन जाए | यह आशय की शुद्धि है । जो हमारी अन्दर की चेतना है, वही बाहर की चेतना है । एक भीतर की चेतना है, जिसका नाम है आशय । आशय शब्द के अनेक प्रयोग हैं । कर्माशय, गर्माशय, पक्वाशय- इन सबके साथ आशय शब्द जुड़ा है । भीतर के लिए आशय का प्रयोग होता है । आशय हमारे भीतर की चेतना है । उसकी शुद्धि हुए बिना ज्ञान भी पवित्र नहीं बनता । जब सम्यक् दर्शन के द्वारा आशय की शुद्धि हो जाती है, तब ज्ञान राही बनता है । उससे पहले ज्ञान सम्यक् नहीं बनता।
विशुद्ध ज्ञान का हेतु
सबसे पहले आशय की शुद्धि का होना आवश्यक है | उसकी शुद्धि के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते । आशय-शुद्धि में बाधा डालने वाला तत्त्व है कषाय । क्रोध, मान, माया, लोभ- ये आशय को शुद्ध नहीं होने देते । आशय शुद्ध नहीं होता है तो हमारा सारा चिंतन भटकाने वाला होता है, नाना प्रकार की उलझनें पैदा करने वाला होता है । हमारा ज्ञान विशुद्ध तब होता है, जब आशय की शुद्धि होती है । आशय की शुद्धि हुई, कषाय
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जैन धर्म के साधना सूत्र
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