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________________ निकाला, उसे बेचा गया । गेहूं बीन कर साफ किया। फिर पीसा गया, तब कहीं रोटी के रूप में सामने आया है । एक रोटी में सैकड़ों-सैकड़ों लोगों का श्रम, उनके पसीने की बूंदें लगी हैं । इसलिए अन्न का दुरुपयोग न करें, उसकी अवज्ञा न करें । यह सारा भोजन के साथ जुड़ा विवेक है । विवेक प्रवृत्ति का प्रवृत्ति के साथ विवेक का जागना बहुत आवश्यक है । हमारी वह प्रवृत्ति लाभदायक नहीं होती, जिसके साथ विवेक नहीं होता । इसलिए प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ परमार्थ की दृष्टि का जागना बहुत आवश्यक है । परमार्थ की दृष्टि जागने पर प्रवृत्ति का परिष्कार हो जाता है । अन्यथा वह प्रवृत्ति धुआं पैदा कर देती है । गीता में ठीक लिखा गया है- 'सरिंभाहिदोषेन धूमेनाग्निरिवावृताः' जितनी प्रवृत्तियां हैं, वे सब दोषयुक्त हैं। कोई भी प्रवृत्ति ऐसी नहीं है, जिसके साथ दोष न हो । जैसे आग के साथ धुआं निकलता है, वैसे ही प्रवृत्ति के साथ दोष आता है | यदि परमार्थ की दृष्टि जुड़ेगी तो कर्म अनावश्यक नहीं होगा । भगवान महावीर ने कर्म का निषेध नहीं किया । उनका निषेध अनावश्यकता से शुरू होता है-- अनर्थ हिंसा मत करो | महावीर ने यह नहीं कहा कि कृषि मत करो । यह कैसे कहा जा सकता है ? इसके बिना जीवन ही नहीं चलता । कोई भी विचारशील व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि तुम रोटी मत पकाओ, खेती मत करो, रोटी मत खाओ । लेकिन यह कहेगा- अप्रयोजन हिंसा मत करो । अनावश्यक हिंसा का वर्जन प्रवृत्ति को सुधारने का एक महत्वपूर्ण सूत्र बन गया । एक विदेशी लेखक पोलारविश ने लिखा-'मैंने अहिंसा के मर्म को समझा है, गांधीजी के सूत्र को पढ़ा है और मैं इस निष्कर्ष पर पहंचा हूं कि जीवन में अल्प हिंसा होनी चाहिए ।' इसे पढ़कर हमने सुझाव दिया कि आपका सूत्र हमें पसंद नहीं आया । जीवन में अल्प हिंसा होनी चाहिए, यह अहिंसा की वाणी नहीं हो सकती । अहिंसा की भाषा हो सकती है कि जीवन में हिंसा का अल्पीकरण होना चाहिए, हिंसा की कमी होनी चाहिए । यह अहिंसा का प्रतिनिधित्व करने वाला सूत्र बनेगा । प्रवृत्ति को निर्दोष बनाने सफल जीवन के सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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