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ही इन्द्र भी वहां पहुंचा । भगवान् के चरणो में नत हुआ, मुनि दशार्णभद्र से बोला- राजन् ! पदार्थ का प्रदर्शन मेरी शक्ति के आगे टिक नहीं सकता, किन्तु आपकी इस त्यागवृत्ति के आगे मैं नतमस्तक हूं | आप जीते और मैं हारा ।
जिसमें निष्पृहता और त्याग की वृत्ति जाग जाती है, उसे दुनिया में झुकाने वाला कौन है ? झुकाया उसी को जा सकता है, जिसके भीतर चाह
समस्या आदत की
हम आदतों का संग्रह करते हैं, विचारों का संग्रह करते हैं और प्रकृति का भी संग्रह करते हैं । कितनी आदतें हमने बना ली हैं । मनोविज्ञान का एक शब्द है- अर्जित आदत । बच्चा जन्मता है तो उसके बहुत ज्यादा आदतें नहीं होती । धीरे-धीरे वह आदतें अर्जित करने लग जाता है । कहां से आती हैं ये आदतें? वह अपने आसपास के परिवेश से सीखता है । उसे कोई चीज देता है तो वह झट से ले लेता है किन्तु वापस मांगते ही मुट्ठी बन्द कर लेता है। कभी-कभी तो वह माता-पिता को भी देने से इन्कार कर देता है | बच्चे की बात छोड़ भी दें। आदमी बड़ा होकर लाखों-करोड़ों का अर्जन करता है । आवश्यकता है दो समय रोटी की, कुछेक वस्त्रों की । किन्तु करोड़ों के संग्रह के लिए दिन-रात एक करता है । किसलिए? क्या नाम के लिए? नाम किसका कहां तक चला है ? चला भी है तो त्यागियों का । भोगी का नाम इतिहास की किस पुस्तक में दर्ज होता है ? आज नाम चल रहा है राम का, कृष्ण का, मोहम्मद का, जीसस का, महावीर का, बुद्ध का, आचार्य भिक्षु का, नानक का और इस युग में गांधी का । युगों-युगों से लोग इन्हें आदर के साथ स्मरण करते आ रहे हैं । भोग कभी अमर नही बनता । अमर कोई चीज होती है तो वह त्याग और तप है । एक व्यामोह है अर्जन का इसलिए व्यक्ति विसर्जन की बात भूल जाता है । निर्विवाद परिभाषा
महावीर ने त्याग और संयम की जो शिक्षा दी, वह अपूर्व है | आचार्य
प्रत्याख्यान
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